बेहतर है
काव्य साहित्य | कविता हिमानी शर्मा1 Sep 2022 (अंक: 212, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
तन्हा सफ़र मजबूरी का नहीं,
आदत का ग़ुलाम हो तो बेहतर है।
ख़ुशी मिले तोलकर ही सही,
बस अफ़सोस का आलम ना हो तो बेहतर है।
इस सफ़र में कोई ख़ुश हो ना हो हमसे,
बस ख़फ़ा ना हो तो बेहतर है।
परवाह करे न करे कोई इस मुलाज़िम की,
बस हम किसी से बेपरवाह ना हों तो बेहतर है।
रास्ते ऊबड़ खाबड़ ही सही,
इरादों से हिम्मत जुदा ना हो तो बेहतर है।
मंज़िल तक पहुँचना मुश्किल ही सही,
ये सफ़र बस एक सज़ा ना हो तो बेहतर है।
इनायत भले नसीब ना हो इस इश्क़ को,
इबादत हो तो बस ख़ुदा की हो तो बेहतर है।
इंतज़ार का पहर यूँ ही गुज़रे
आहिस्ता-आहिस्ता लेकिन,
जब उनसे रूबरू हों तो—
ये साँसें फ़ना ना हों तो बेहतर है।
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Shubham Sharma 2022/10/06 07:22 PM
Awesome poem you r the greatest writer ever