सामर्थ्य
काव्य साहित्य | कविता हिमानी शर्मा1 Apr 2025 (अंक: 274, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
मैं साथ भी हूँ, समानार्थ भी,
तेरी आँखों में बसी पहचान-सी।
ठंडी हवा की आड़ में छुपी,
हल्की बारिश की होती हुई बौछार-सी।
तू ठहराव भी है, और अर्थ भी,
मैं बिखरती ख़ुशबू के इम्तिहान-सी।
मैं साथ भी हूँ, समानार्थ भी,
तेरी आँखों में बसी पहचान-सी।
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