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गर्मी और पेड़

 

सूरज ने ऑंखें दिखलाईं, 
फिर गर्मी फैलाई। 
भट्टी जैसी धरा हो गयी, 
ऐसी आग लगाई॥
 
इतने ग़ुस्से में क्यों सूरज, 
सबको थी हैरानी। 
ताल-तलैया लगे सूखने, 
सबने माॅंगा पानी॥
 
बंद हो गयी हवा अचानक, 
कठिन हो गया जीना। 
इधर प्यास ने ज़ोर लगाया, 
आया उधर पसीना॥
 
ऐसी उलझन हुई, सभी को
याद आ गयी नानी। 
बूॅंद बूॅंद पानी की क़ीमत, 
सबने ही पहचानी॥
 
दादा बोले—‘सारे मिलकर 
जल के स्रोत बचाओ। 
गर्मी से यदि बचना है तो, 
सब मिल पेड़ लगाओ॥’

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