पिचकारी नई दिलायी
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता त्रिलोक सिंह ठकुरेला15 Mar 2021 (अंक: 177, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
फागुन आया, बनी होलिका,
फिर उसमें दी आग।
सबके अंदर उठी उमंगें,
और बढ़ा अनुराग।
रंग लगाकर गले मिले सब,
गालों मला गुलाल।
ढोल नगाड़े बजा बजाकर
सबने किया धमाल॥
चबूतरे पर रख पिचकारी
गयी भारती अंदर।
पिचकारी ले चढ़ा पेड़ पर
काले मुँह का बंदर।।
अमन, अनुज , अनुराग
और राघव नाचे दे ताली।
खिसियाकर रो पड़ी भारती,
मुँह पर छायी लाली।।
दादाजी ने पुचकारी वह,
सब को डाँट लगायी।
फिर दुकान से एक नई
पिचकारी उसे दिलायी॥
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