साहस
बाल साहित्य | किशोर साहित्य कविता त्रिलोक सिंह ठकुरेला15 Feb 2021 (अंक: 175, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
मत अन्धकार से डरो कभी,
जुगनू सा स्वयंप्रकाश बनो।
काँटों से भला वितृष्णा क्यों
फूलों की मधुर सुवास बनो॥
चिंता करने की बात नहीं,
यदि आ जायें रातें काली।
आशा का चन्दा उगने पर
फैलेगी मनहर उजियाली॥
तूफ़ान मिलेंगे जीवन में,
पर तनिक नहीं घबराना है।
साहस की नौका साथ लिए
आगे ही बढ़ते जाना है॥
साहस वह एक परम गुण है,
जो जीवन श्रेष्ठ बनाता है।
साहस ही है वह महामंत्र,
जो जीत सदैव दिलाता है॥
हे वीर-सपूतो उठो, उठो,
साहस से तन-मन-प्राण भरो।
चाहो तो सब कुछ संभव है,
उत्कर्ष करो, उत्कर्ष करो॥
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