बढ़े चलो
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता त्रिलोक सिंह ठकुरेला15 Sep 2019
भारती के लाल! तुम बढ़े चलो।
धैर्य की मशाल, तुम बढ़े चलो॥
बढ़े चलो, डगर डगर,
न मन में हो अगर-मगर,
कभी न हार मानना,
हों कोटि विघ्न भी अगर,
तेज-पुंज-भाल, तुम बढ़े चलो।
धैर्य की मशाल, तुम बढ़े चलो॥
खाइयों का डर किसे,
पहाड़ रोकता किसे,
तुम प्रचण्ड शक्ति हो,
न काल का भी भय जिसे,
काल के भी काल, तुम बढ़े चलो।
धैर्य की मशाल, तुम बढ़े चलो॥
अंधकार हो अगर,
तो दीप से जले चलो,
तुम विजय वरेण्य ही हो,
लक्ष्य तक चले चलो,
सबसे बेमिसाल, तुम बढ़े चलो।
धैर्य की मशाल, तुम बढ़े चलो॥
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