गुलमोहर के नीचे
काव्य साहित्य | कविता डॉ. पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’15 May 2025 (अंक: 277, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
गुलमोहर के नीचे
एकाकी मौन मूर्ति
चिंता के भूकंप से कंपित
शांत बैठी
शून्य में ताकती
कुछ खोजती
निर्मला-सी
पत्थर की अनघड़1
हिममयूख2 . . .
समतल-सी किरच3
सिहर उठी
अँगूठी का जंगल
नग का फिसलन
जड़कर . . .
उघड़ रहा
व्यथा अँगूठी की
अनकही रही . . .
विरह का वैधव्य4-सा कोटर5
हँसता रहा
अनजान डगर
तकता रहा
फिर . . .
पुनः गुलमोहर के नीचे
कुछ बतियाकर झलता रहा
सम्बोधन का घाव
टीस . . .
अँगूठी का कंपन-सा सालता
त्रिकम्पित मन
बंद नयन से
उन्हें देखता रहा
उनके अंतर्मन की प्रतिध्वनि सुनता रहा॥
1. अनघड़=बेढंगा, बेडौल
2. हिममयूख=बर्फ़ की किरण
3. किरच=नुकीला, छोटी बरछी
4. वैधव्य=विधवापन लिए हुए
5. कोटर=पेड़ का खोखला भाग
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