कौन है उधर
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. खेमकरण ‘सोमन’15 Jul 2022 (अंक: 209, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
दंगा हुआ, हर जगह लाशें बिछी हुई थीं। सामान बिखरा हुआ था। घर-मकान, बस, ट्रक, दुकान . . . सभी कुछ को फूँक दिया गया था। ज़िन्दगी नाम की चीज़ कहीं दिखाई नहीं दे रही थी।
तभी कुछ सुगबुगाहट हुई। कुछ आस बँधी कि कहीं कुछ अभी भी बचा हुआ है।
“कौन . . .? कौन? कौन है उधर?” एक नारी स्वर उभरा।
इस नारी स्वर के बाद वातावरण में पूर्णतः ख़ामोशी छा गई।
“मैं . . . मैं . . . मैं . . . ” फिर दर्द के साथ एक नर स्वर बुलन्द हुआ, “मैं ख़ून से लथपथ हूँ। ज़रूर आप भी।”
दोनों धीरे-धीरे सरकते-सरकते एक दूसरे के पास आ गए। किसी ने भी एक दूसरे का नाम नहीं पूछा। न धर्म न जाति, न बोली न भाषा। बस बातचीत करते रहे। दोनों एक दूसरे की आँखों का पानी पोंछते रहे। दुख-दर्द, दंगाइयों की कहानी सुनते रहे, सुनाते रहे।
अचानक दोनों उठ खड़े हुए और शहर के पार जाती सड़क पर आ गए। रात का घुप्प अँधेरा था, लेकिन फिर भी लहूलुहान दोनों प्राणी आगे का रास्ता साफ़-साफ़ देख पा रहे थे।
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