केवल वे ही बचेंगे
काव्य साहित्य | कविता डॉ. खेमकरण ‘सोमन’1 Jun 2022 (अंक: 206, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
केवल वे ही बचेंगे अब
उनके अलावा किसकी दोस्ती नहीं है—
बीमारी, दुःख, अवसाद, चिंता और मौत से
शर्म, मौन और पीड़ा की
एक गहरी परत बिछी हुई है
देश के मुख पर कि कहाँ हूँ मैं
किसके हवाले हूँ?
क्या होगा किसानी और किसानों का
एफ.सी.आई. में अनाज सड़ रहे हैं
भूख-प्यास, बेरोज़गारी,
और कोरोना की अलगनी पर ग़रीब-मज़दूरों का शरीर
हॉस्पिटल, सुविधाएँ सक्षम लोगों के लिए,
महँगी दवाइयाँ भी भूल चुकी हैं
आम लोगों के चेहरे, नाम और घर का पता
यह देखकर देश के दिल में दर्द उठा अचानक,
भयानक और असहनीय!
डूब रहा है जीवन का सूरज
कई परिवार अब देख नहीं पाएँगे
चाँद, चाँदनी, तारे गण, रात का सन्नाटा
और सुबह का नज़ारा
सुबह-सुबह
हवा की महक, हरियाली और ताज़गी निराश होगी
किसी को मॉर्निंग वॉक पर न पाकर!
केवल वे ही बचेंगे अब
उनके अलावा किसकी दोस्ती नहीं है—
बीमारी, दुःख, अवसाद, चिंता और मौत से
केवल वे ही बचेंगे
अर्थात् नेता, मंत्री और पूँजीपति
जो ख़रीद चुके है चाँद पर भी ज़मीन
ताकि बचे रहें वे तमाम बीमारियों,
महामारियों, अकाल, बाढ़, सूखा
और युद्धों की काली छाँव से!
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