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यह कौन है

“क्या करूँ मैं? अब तक जिनसे भी बात कर पाया हूँ; सबके सब नंगे निकले! उफ़ . . . देश की आज़ादी के बाद से ही धोखा और धोखा! पल-पल धोखा। कैसा समय आ गया है कि यह सब कुछ देखकर भी चुप रहना, और कुछ न बोलना ही लोगों ने अपनी ईमानदारी और समझदारी मान लिया है। हर किसी पर आवरण चढ़ गया है। किसी पर झूठ का आवरण तो किसी पर हरामख़ोरी का आवरण।” ऐसा सोचते-सोचते वह वहीं बैठ गया। अँधेरा भी बढ़ने लगा था। 

“. . . चाहे एक बार, दो बार, तीन बार या दस बार अदालत मुझ पर दफ़ा तीन सौ दो लगाए, लेकिन यह बंदा सच्चाई का साथ नहीं छोड़ेगा! कभी नहीं। झूठ में फँसाकर मेरे शरीर के चिथड़े उड़ा दिए जाएँ, तो उड़ा दिए जाएँ लेकिन यह दुनिया एक दिन ज़रूर जानेगी कि मैं क्या था? मेरी सच्चाई, मेरी ईमानदारी और मेरी लड़ाई क्या थी! . . . जैसे भगत सिंह को जानती है पूरी दुनिया!”

वह चौंक पड़ा, “हैं . . .! यह कौन है भाई? कौन है यह, जिसकी बात सुनकर मैं इतना उत्साहित हो रहा हूँ। इस कलयुग में यह कौन है भाई, जो सच्चाई के वास्ते दस बार भी क़ुर्बान होने को तैयार है।”

उसने देखा, कुछ ही क़दमों की दूरी पर तीन-चार लोगों की बातचीत चल रही थी। 

वह स्वतः ही उनकी ओर बढ़ने लगा। 

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