विश्वग्राम
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. खेमकरण ‘सोमन’15 Jul 2022 (अंक: 209, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
पार्क में दो साहब लोगों की बातचीत चल रही थी। दोनों साहब लोग सिगरेट पी रहे थे।
“दुनिया अब सिमट-सी गई है। तीन-चार दिनों में ही पूरी दुनिया घूम लीजिए।”
“सही कहा आपने।”
“देश यहाँ भले ही सैकड़ों हों लेकिन आज के समय में सभी देश एक-दूसरे के टच में हैं। पूरी दुनिया अब विश्वग्राम में तब्दील हो चुकी है।”
“कोई शक नहीं जी इसमें।”
“नई-नई तकनीकियाँ आ गई हैं। टीवी, मोबाइल, इण्टरनेट और उपग्रह आदि; इन प्रौद्योगिकी संजालों ने तो आदमी को आदमी के और भी क़रीब ला दिया है।”
“क्या बात कही आपने! यक़ीनन आज का आदमी अपने परिवार के ज़्यादा क़रीब है। वह दूर रहकर भी अपने परिवार, सगे-सम्बन्धियों को एक सूत्र में पिरोए हुए है।”
अभी उनकी बातचीत चल ही रही थी कि उनके बीच कोई तीसरे साहब आ धमके।
“अरे! दीवान जी और रमेश जी! आप दोनों यहाँ! मेरे शहर में, और मुझे ख़बर तक नहीं। कैसे?”
“बस ऐसे ही!” दोनों साहब हँसकर अपने दोस्त से मिलने लगे। आपस में वार्तालाप हुआ। फिर थोड़ी देर बाद ही तीसरे साहब आयाराम-गयाराम की तरह वहाँ से रुख़्सत हुए।
“काफ़ी देर हो गई,” एक साहब ने कहा, “देश-दुनिया, तकनीक पर बातचीत करते हुए। अब हमें अपने-अपने पिताजी से मिल लेना चाहिए।”
“जी हाँ, बिलकुल-बिलकुल,” दूसरे साहब ने कहा, “आइए चलते हैं।”
दोनों साहब थोड़ी दूरी पर स्थित वृद्धाश्रम की ओर बढ़ चले।
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