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कैसे पाओगे मुक्ति

काले आदमी को मारकर मुक्ति पा ली
पर रात का चेहरा भी होता है काला
तो कैसे पाओगे मुक्ति
इन काली रातों से
 
कैसे पाओगे मुक्ति 
उन काले बालों से जो तुम्हारे सिर पर
शरीर पर भी उगे हुए
 
कैसे पाओगे मुक्ति 
अपनी काली आँखों से जिनसे
दिन के उजाले में भी नहीं देखा जाता तुमसे
कोई वस्तु सामान या मनुष्य
 
कैसे पाओगे मुक्ति 
उन काले रंगों से जो तुम्हारे घर के
कोने-कोने में बिखरे हुए
या उन काले तवों से
जिन पर तुम्हारे पुरखे और अब तुम
रोटियाँ सेंकते आ रहे हो सदियों से
 
बताओ, कैसे पाओगे मुक्ति
अपनी ही परछाईं से जो पूर्णतः काली
या उन काले बादलों से
जिन्हें देख तुम हर्षा जाते थे बचपन में
और अब भी
 
कैसे पाओगे मुक्ति
उन काले अक्षरों से जिनमें छिपी है-
तुम्हारी पहचान! 
 
कैसे पाओगे मुक्ति
ऐसे में जब तुम उगा रहे हो दिन-रात
दिमाग़, हुनर, न्याय, 
बराबरी और मनुष्यता की जगह-
रंगभेद, ऊँच–नीच
और युद्ध-दंगे का विष पौध।

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