ज़मीन
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. खेमकरण ‘सोमन’15 Jun 2022 (अंक: 207, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
“ये ज़मीन सिर्फ़ मेरी है!” बड़े भाई ने अपनी छाती फुलाकर गर्वीली मुस्कान से कहा तो ऐसा लगा कि उसकी बात सुनकर ज़मीन ने भी बुरा सा मुँह बना दिया हो।
तब तक छोटा भाई भी आ गया था। उसे सुनाते हुए बड़े भाई ने फिर कहा, “ये ज़मीन सिर्फ़ मेरी है! सिर्फ़ मेरी!”
बड़े भाई की बात सुनकर छोटा भाई बोला, “नहीं भइया! ये ज़मीन सिर्फ़ आपकी नहीं बल्कि मेरी भी है!”
इस प्रकार उनकी बातें आगे बढ़कर लड़ाई-झगड़े में परिवर्तित हो गई। फिर तीर, तलवार और धारदार हथियार भी निकल पड़े। अन्ततः दोनों भाइयों ने एक-दूसरे को काट मारकर यहाँ-वहाँ फेंक दिया।
उसी ज़मीन को लेकर आज तक हज़ारों भाई एक-दूसरे को काटकर फेंक चुके हैं और ज़मीन . . . ज़मीन है कि आज भी उसी तरह पड़ी हुई है।
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