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सोशल मीडिया और देवनागरी लिपि

आधुनिक बुद्धिवाद, जिसके कारण वैज्ञानिक और औद्योगिक क्रांति सम्भव हुई और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बाढ़ आ गई है, मनुष्य की सोच, रहन-सहन और प्रगति के पथ में आमूल बदलाव ले आया है। दरअसल भूमंडलीकरण, भौतिक तकनीकी विकास ने मानव के विकास के पथ को इतना विस्तृत कर दिया है कि उसने अपनी एक अलग ही दुनिया बना ली है।

अगर हम थोड़ी बहुत लिपियों की बात कर लें तो विषय का स्पष्टीकरण अधिक सहज होगा। मानव के महान आविष्कारों में लिपि का स्थान सर्वोपरि है। मानव समाज जब ताम्रयुग में पहुँचता है, प्राचीन जगत की उभरती सभ्यताओं में जब नगरों की स्थापना होने लगती है, तब हम पहली बार लिपियों को जन्म लेते देखते हैं। मिश्र, मेसोपोटामिया और चीन की आरंभिक लिपियाँ मुख्यतः भाव-चित्रात्मक थीं, ईसा पूर्व दसवीं सदी के आस-पास पहली बार वर्णमालात्मक लिपियाँ जन्म लेती हैं। तब से आज तक लिपियों का विशेष विकास नहीं हुआ है। बहुत सी पुरालिपियाँ मर गई हैं उनका ज्ञान लुप्त हो गया है। पिछले क़रीब दो सौ वर्षों में संसार अनेक पुरालिपिविदों ने पुनः उन पुरानापन का उद्घाटन किया है। परिणाम स्वरूप हमें प्राचीन सभ्यताओं के बारे में नई नई जानकारियाँ मिलीं।

सभ्य मानव का सबसे बड़ा आविष्कार है लेखन-कला। मानव के विकास में, अर्थात्‌ मानव सभ्यता के विकास में, वाणी के बाद लेखन का ही सबसे अधिक महत्त्व है। अन्य पशुओं से मानव को इसलिए सबसे अधिक श्रेष्ठ माना जाता है कि वाणी द्वारा अपने भावों को अभिव्यक्त कर सकता है। प्राचीन काल के मानव को अपने विचारों को सुरक्षित रखने के लिए लिपि का आविष्कार करना पड़ा था। सुनी या कही हुई बात उसी समय या स्थान पर उपयोगी होती है। किन्तु लिपिबद्ध कथन या विचार दिक और काल की सीमाओं को लाँघ सकते हैं। लिपि के बारे में यही सबसे महत्त्वपूर्ण बात है। संसार की बहुत सी लुप्त प्राय सभ्यताओं के बारे में हम आज इसलिए बहुत कुछ जान सकते हैं कि वे अपने बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ छोड़ गईं हैं।

इस बात को विशिष्ट रूप से मैंने शोध करते समय अनुभव किया। मैंने 'साखी साहित्य' पर शोध कार्य किया है। जिसमें के अधिकांश सामाग्री के लिए मुझे “ओरियंटल इन्स्टिट्यूट” का सहारा लेना पड़ा। वहाँ पर विभिन्न आधारों पर लिखी साखियाँ, विभिन्न रूप में उपलब्ध हुईं। जिनमें सुखे केले के पत्तों पर, पत्थरों पर, कपड़ों पर, ताम्र पत्रों पर, पत्थर की दीवारों पर लिखे गए वर्णों को अध्ययन करके उस समय के विषय और लेखन परंपरा का ज्ञात होता है। जिनको कोयला, रंगीन मिट्टी, सोने का पानी आदि विभिन्न रंगों को माध्यम बनाकर लिखा गया था। अभिव्यक्ति के इस प्रकार के माध्यम से परिचित होने पर मेरे सामने ज्ञान की एक नयी दुनिया खुल गई। उस समय तक मात्राओं की उत्पत्ति के न हाने पर उनके स्थान पर शब्दों का प्रयोग होता था। जैसे—अययधधयआकएरआजआरआमअ—अयोध्या के राजा राम। कम शब्दों में इसे समझाना सम्भव नहीं अतः फिर कभी विस्तार से। देवनागरी एक भारतीय लिपि है। इसके कई नाम हैं—नागरी, नागर, देवनागर, लोकनागरी, हिन्दी लिपि। इनमें हिन्दी, नागरी, देवनागरी सर्वाधिक लोकप्रिय है। जिसमेंं अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कई विदेशी भाषाएँ लिखी जाती हैं। यह बायें से दायें लिखी जाती है तथा इसकी पहचान क्षैतिज रेखा से है जिसे ”शिरोरेखा” भी कहते हैं। संस्कृत, पाली, हिन्दी, मराठी, कोकंणी, सिंधी, कश्मीरी, डोगरी, मैथली, संताली, राजस्थानी भाषा, बरेली आदि सैकड़ों भाषाएँ और स्थानीय बोलियाँ भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पंजाबी, रोमानी और उर्दू आदि भाषाएँ भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। देवनागरी विश्व में सर्वाधिक प्रयुक्त लिपियों में से एक है। यह दक्षिण एशिया की 175 से अधिक भाषओं को लिखने में प्रयुक्त हो रही है।

देवनागरी लिपि का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। यह एक वैज्ञानिक लिपि है। देवनागरी लिपि की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जो लिखा जाता है वही पढ़ा जाता है और जो पढ़ा जाता है वही लिखा जाता है। इसमें सभी ध्वनियों को अंकित करने की क्षमता है। यह लिपि दुनिया की किसी भी भाषा को अंतरित करने में सक्षम है।

सोशल मीडिया का स्वरूप अन्य माध्यमों से बहुत अलग है। यह एक ऑनलाइन आधारित वेबसाइट है। जिसके माध्यम से जुड़कर सूचनाओं को प्रेषित और प्राप्त किया जा सकता है। इसके विभिन्न प्रकार हैं, जिन्हें भिन्न भिन्न नामों से हम जानतें हैं जैसे—ब्लॉगिंग, माइक्रोब्लॉगिंग, सोशल नेटवर्क आदि।

सोशल मीडिया एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा देश-दुनिया के अनेक व्यक्तियों से ऑनलाइन तकनीक के माध्यम से जुडा जा सकता है। यदि सोशल नेटवर्किंग के साइटों के स्वरूप की बात करें तो इन साइटों की संरचना कुछ इस प्रकार होती है कि इनके माध्यम से आप टेक्स्ट, ऑडियो विजुअल तीनों प्रकार के संदेश संप्रेषित कर सकते हैं। सोशल मीडिया में मैसेंजर की सुविधा भी होती है, जिसके द्वारा आप व्यक्तियों से चैटिंग कर सकते हैं।

साथ ही वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग एवं ऑडियो काल जैसी सुविधा भी होती है। प्रत्येक सोशल साइट्स अपनी अलग अलग विशिष्टता के लिए जानी जाती है। कुछ सोशल साइट्स में तीनों प्रकार (टेक्स्ट, ऑडियो, वीडियो) की सुविधाएँ हैं। इसके बावजूद और अनेक प्रकार की सुविधाएँ हैं जिसके माध्यम से हम सुविधाजनक रूप से अपने को अभिव्यक्त कर सकते हैं।

भारत की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत के साथ ही कई भाषाओं की लिपि देवनागरी है। जिस प्रकार से देवनागरी लिपि में स्वर एवं व्यंजन के लिए अलग अलग ध्वनियों का प्रयोग किया जाता है। आज देवनागरी लिपि में कार्य करने की सुविधा उपलब्ध है। वर्ड, ऐक्सल, पॉवर पाइंट आदि से लेकर इंटरनेट पर हिन्दी और भारतीय भाषाओं में काम करने की तमाम सुविधाएँ हैं और तमाम बाधाओं के बावजूद देवनागरी लिपि ने सोशल मीडिया पर एक ख़ास जगह बना ली है।

भारत सरकार डिजिटल इंडिया को अत्यधिक प्राथमिकता देते हुए इसे कार्यान्वित करवाने के लिए योजनाबद्ध रूप से सक्रियता पूर्वक लगी है। इंटरनेट और उससे जुड़ी सेवाओं से देश को जोड़ने में भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। विश्व सूचना-प्रौद्योगिकी के नए युग में प्रवेश करने जा रहा है। उत्पादन-विपणन, सेवा, अनुसंधान-विकास और मानव संसाधन आदि विभिन्न क्षेत्रों से जुड़कर एक नई दुनिया में जाने को तैयार है, जिसे वर्चुअल-वर्ल्ड यानी आभासी दुनिया कहा जा रहा है। अब न्यू जेनेरेशन को कम्प्यूटर प्रणालियों की चर्चा के लिए संस्कृत को सर्वाधिक अनुकूल बताया जा रहा है।

सोशल मीडिया हिन्दी के लिए बहुत ही सकारात्मक पहलू बन गया है। हिन्दी के प्रति नई पीढ़ी में रूझान बढ़ा है। फ़ेसबुक, ह्वाट्स अप और ट्वीटर पर नई पीढ़ी द्वारा देवनागरी लिपि में लिखि गई अभिव्यक्ति और टिप्पणीओ को पढ़कर मन में बड़ी प्रसन्नता होती है। सोशल मीडिया पर जो हिन्दी भाषा में प्रचार प्रसार हो रहा है उससे हिन्दी को संबल मिला है।

जैसा कि आमतौर पर देखा गया कि फ़ेसबुक ने संपूर्ण हिन्दी जगत को एक मंच पर लाकर खड़ा किया है। आज सोशल मीडिया के द्वारा लेखक। कवि अपने पाठकों के इतने नज़दीक पहुँच गए कि हाथों हाथ प्रत्युत्तर प्राप्त हो रहें हैं। यह सोशल मीडिया और देवनागरी लिपि के प्रभाव का ही फल है कि पाठकों, संपादकों, साहित्यकारों आदि की आपसी दूरियाँ कम हुई हैं। यह सोशल मीडिया का ही प्रभाव है जो साहित्य के सुनहरे भविष्य के लिए आश्वस्त रहता है। निस्संदेह यह कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया आज हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए महत्त्वपूर्ण है।

कोरोनाकाल में लाॅकडाउन के दौरान लोग अधिकांश अपने घरों में ही रहे। ऐसे में सोशल मीडिया के विभिन्न प्लैटफ़ॉर्म पर लोगों की सक्रियता बढ़ी। संक्रमण काल के चलते जब चारों तरफ़ निराशा थी इसी दौरान सोशल मीडिया पर हिन्दी का प्रचार प्रसार बड़ी तेज़ी से बढ़ा। डिजिटल क्रांति में हिन्दी के साहित्यकारों और कवियों में एक जुटता दिखी। सेमिनार आदि आयोजित किए गए और साहित्य के साथ साथ विज्ञान आदि के विषयों पर भी रुचि लेकर विद्वजनों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। इन सबका जब लिखित रूप प्रस्तुत किया गया तब इसका माध्यम देवनागरी लिपि बनी। इस प्रकार से साहित्यिक प्रवृत्तियों में देवनागरी लिपि का भरपूर उपयोग किया गया। यह इतना सहज और सरल रहा कि हर व्यक्ति इसका प्रयोग आसानी से कर कहा है।

अब कुछ बातें कम्प्यूटर में इसके प्रयोग को लेकर– देवनागरी में लिखी गई हिन्दी को राजभाषा हिन्दी के रूप में माना गया है। देवनागरी एक वैज्ञानिक लिपि है। कोई भी लिपि वैज्ञानिक तब कही जाती है जब उसके प्रत्येक सार्थक ध्वनि के लिए कोई न कोई ध्वनि चिह्न हो। देवनागरी में लगभग हर सार्थक ध्वनि के लिए एक लिपि चिह्न है। अतः हम कह सकते हैं कि यह एक वैज्ञानिक लिपि है। इस तथ्य को देखते हुए हम कह सकते हैं कि हिन्दी कम्प्यूटर के लिए और कम्प्यूटर हिन्दी के लिए देवनागरी लिपि काफ़ी उपयोगी सिद्ध हो सकती है।

देवनागरी लिपि की कुछ ख़ास बातें हैं जो इस प्रकार हैं:

लिपि चिह्नों के नाम ध्वनि के अनुरूप—

देवनागरी की सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण शक्ति यह है कि लिपि चिह्न जिस ध्वनि का द्योतक है उसका नाम भी वही है। जैसे—आ, ओ, क, ब, थ आदि। इस प्रकार से लिपि चिह्नों की ध्वनि शब्दों में प्रयुक्त होने पर भी वही रहती है। अन्य किसी भी लिपि में इतना सामर्थ्य नहीं है।

एक ध्वनि के लिए एक लिपि चिह्न—

श्रेष्ठ लिपि के लिए यह आवश्यक है। एक ध्वनि के लिए एक से अधिक ध्वनि चिह्न होगी तो प्रयोग करते समय बाधा उपस्थित होगी कि वह किस चिह्न का प्रयोग कहाँ करे। कुछ अपवादों को छोड़कर देवनागरी लिपि में एक ध्वनि के लिए एक ही लिपि चिह्न है।

लिपि चिह्नों की पर्याप्तता—

विश्व की अधिकांश लिपियों में चिह्न पर्याप्त नहीं है जैसे अँग्रेज़ी में 40 से अधिक ध्वनियों के लिए 26  लिपि चिह्नों से काम चलाया जाता है।

सन 2000 में हिन्दी का वेबपोर्टल जब अस्तित्व में आया तभी से इंटरनेट पर हिन्दी ने अपनी छाप छोड़़ी शुरू कर दी जिसने अब एक विस्तृत रूप धारण कर लिया है। इंटरनेट पर हिन्दी का सफ़र रोमन लिपि से आरंभ होता है और फाॅन्ट जैसी समस्याओं से जूझते हुए धीरे-धीरे वह देवनागरी लिपि तक पहुँच जाता है। यूनिकोड, मंगल जैसे यूनिवर्सल फाॅन्टों ने देवनागरी लिपि को कम्प्यूटर पर नया जीवन प्रदान किया है। आज इंटरनेट पर हिन्दी साहित्य से संबंधित लगभग सत्तर से भी अधिक ई-पत्रिकाएँ देवनागरी लिपि में उपलब्ध है। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के साथ देवनागरी लिपि की विशेषता का भी प्रत्यक्ष प्रभाव हम सोशल मीडिया पर देखते हैं।

वर्तमान में अपने भावों या विचारों को आमजन तक पहुँचाने में सोशल मीडिया महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। सोशल मीडिया एक विशाल नेटवर्क है जो कि सारे विश्व को एक सूत्र में बाँधता है। यह विश्व का सुगम और सस्ता माध्यम है जो तीब्र गति से सूचनाओं का आदान-प्रदान करके हर क्षेत्र की घटनाओं को आमजन तक पहुँचाता है। लोकप्रियता के प्रचार-प्रसार में मीडिया एक बेहतरीन प्लैटफ़ॉर्म है।

कुछ समय पूर्व जब सोशल मीडिया का अवतरण हुआ तब ज़्यादातर लोग अँग्रेज़ी भाषा का ही प्रयोग करते थे, उस समय हिन्दी भाषी लोग सोशल मीडिया का सहज उपयोग नहीं कर पाते थे। लेकिन अब बदलते परिदृश्य के साथ-साथ हिन्दी भाषा ने सोशल मीडिया के मंच पर दस्तक देकर अपने अस्तित्व को और भी बुलंद तरीक़े से स्थापित किया है। आज जहाँ फ़ेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप पर अँग्रेज़ी में लिखे गए पोस्ट या फिर कमेंन्ट की भीड़ में देवनागरी लिपि में लिखी गई पोस्ट या फिर कमेंन्टस लोगों को ज़्यादा आकर्षित करती हैं। आज विभिन्न कम्पनियाँ हिन्दी भाषा में अपना विज्ञापन तथा सूचनाओं का प्रचार-प्रसार करती हैं, क्योंकि उनका मानना है कि आज हिन्दी भाषा का फलक बहुत विस्तृत है और अगर उन्हें अपनी सूचनाओं को बहुसंख्यक लोगों तक पहुँचाना है तो वही भाषा चुननी होगी, जिसके पाठक वर्ग अधिक हों तथा पाठक आश्वस्त, सहज और पारिवारिकता महसूस करे।

इसके लिए हिन्दी से अच्छा विकल्प और कुछ हो ही नहीं सकता। सोशल मीडिया में हिन्दी भाषा के वर्चस्व का प्रमुख कारण यह है कि हिन्दी भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त एवं वैज्ञानिक माध्यम है। लिखी गई बात पाठक वर्ग तक उसी भाव में पहुँचती है जिस भाव से लिखा जाता है। सोशल मीडिया पर मौजूद हिन्दी का ग्राफ दिन दो गुनी रात चौगुनी बढ़ रहा है। यह हिन्दी भाषा की सुगमता सरलता और समृद्धता का प्रतीक है।

कई शोधों में सामने आया है कि दुनियाभर में अधिकांश लोग रोज़मर्रा की सूचनाएँ सोशल मीडिया के माध्यम से ही प्राप्त करते हैं। वर्तमान में आम नागरिकों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए इसका प्रयोग काफ़ी व्यापक स्तर पर किया जा रहा है।

सबसे अहम बात यह है कि न केवल साधारण लोग ही सोशल मीडिया पर देवनागरी लिपि का प्रयोग करके अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर सकते हैं अपितु साहित्यिक प्रवृत्तियों में भी स्वयं को लिप्त रख सकते हैं। माध्यम देवनागरी लिपि होने के कारण पठन, लेखन और मनन ये तीनों ही सरल होता जा रहा है। अतः अगर यह कहा जाय कि भाषा की विशेष बनावट के कारण देवनागरी लिपि ने सोशल मीडिया पर अपना एकछत्र अधिकार बना लिया है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। 

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टिप्पणियाँ

p n mukharji 2022/04/24 10:49 AM

excellent

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