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अम्बर के धन चाँद सितारे 

अम्बर के धन चाँद सितारे

 

प्रथम किरण सूरज की 
पृथ्वी के जन को अर्पण है 
प्रातकाल जो फूल खिला 
वह उस बेला का धन है

 

धन्य हुए भौंरे 
जब कली सुरम्य फूल बनकर उभरी 
फूलों का धन है वह मौसम 
जिसमें बहती मंद बयारें

 

कवि, व्यभिचारी, चोर मानते हैं 
अतिशय महत्व सुवरन का 
पर निहितार्थ अलग हैं सबके  
सबका अपना मनका  

 

निर्धन कौन यहाँ 
किसको मानूँ धनवान जगत में
धरती पर है धन अपार 
पर धरती के धन संत जना रे 


बहुविधि कर श्रृंगार 
रूपसी प्रिय की व्याकुलता हरती 
सौंदर्य सृजन के नव प्रयोग से 
पौरुष को वश में करती 

 

वह अविचल दीप्ति स्वत्व समझाती
हो आरूढ़ शिखर पर 
दर्पण का धन है प्रतिबिंब
सुवर्ण परी जब रूप निहारे 


 

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