मैं नन्हा-मुन्हा बालक
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव'23 Feb 2019
सूरज उगता है दिन में ही, चंदा उगता रात में
पता नहीं क्यों दोनों कभी नहीं उगते हैं साथ में
मैं नन्हा-मुन्हा बालक मुझको दोनों ही भाते हैं
धरती से हैं दूर बहुत पर लेना चाहूँ हाथ में
एक बार जब शाम के समय सूर्य देवता डूब गये
मैंने माँ से पूछा क्या ये भगवन् हमसे रूठ गये
माँ बोली सूरज को उनकी माता सुला रही हैं
तू भी खा-पीकर सो जा अब मत उलझाओ बात में
उसी रात जब चंदा मामा अस्त हुए बदली में
मैं घर लौटा ढूँढ़-ढूँढ़ कर उनको गली-गली में
माँ कुछ कहती उससे पहले ही मैं सहसा बोल उठा
लगता है ये चांद गये हैं तारों की बारात में
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
किशोर साहित्य कविता
कविता-मुक्तक
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
कविता
अनूदित कविता
नज़्म
बाल साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं