राघवेन्द्र पाण्डेय मुक्तक 3
काव्य साहित्य | कविता-मुक्तक राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव'1 Jun 2019
1.
कौन ख़ुश होता है अब अपनी कमी को मारकर
आदमी तो ख़ुश हुआ है आदमी को मारकर
ढूँढ़ते फिरते किसे हो, जान का दुश्मन बने
लो, बुझा लो प्यास अब आओ हमीं को मारकर
2.
काम ख़ुद तो कभी आता नहीं है लाईन पर
काम ये, मुझको भी लाईन से हटा देता है
काम जिसके लिए दिन-रात किया मैंने, वो
मुद्दई, बस मुझे साईन से हटा देता है
3.
ज़िंदगी बहती नदी, कुछ आख़िरी करता नहीं
सबकी सुनता हूँ, किसी की मुख़बिरी करता नहीं
अपने मन की बात बोलूँ, अपनी ही आवाज़ में
फ़ख़्र है कि मैं किसी की मिमिक्री करता नहीं
4.
अब तो है भगवान ही मालिक भरोसा राम पर है
कर्मठी सब हैं किनारे, और निकम्मे काम पर हैं
दिन, उजाला, धूप, सूरज सबने बहकाया मुझे
ज़िंदगी में रौशनी हो, अब तो नज़रें शाम पर हैं
5.
मिट गए सब आवरण, पर मूल को ज़िन्दा रखा
पत्तियों ने जान देकर, फूल को ज़िन्दा रखा
जिसको मेरी भूल कहकर, कर लिया तुमने किनारा
उम्र भर मैंने प्रिये, उस भूल को ज़िन्दा रखा
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
किशोर साहित्य कविता
कविता-मुक्तक
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
कविता
अनूदित कविता
नज़्म
बाल साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
पंकज त्रिपाठी 2019/06/01 02:21 AM
अद्भुत,अद्वितीय, अतुलनीय लेखनी गुरु जी