जाड़े की है सुबह
काव्य साहित्य | कविता राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव'4 Feb 2019
जाड़े की है सुबह, कड़ाके की ठंडी है
कुहरा बड़ा ढीठ, ओस भी बड़ी घमंडी है
आह! बड़ी बर्फीली सर्दी
जाने कैसी हालत कर दी
बाहर छायी घनी धुँध है
कई दिनों से स्कूल बंद है
दोस्त-मित्र सब ओढ़ रजाई
घर में छुपे हुए हैं भाई
लुका छिपी का खेल रुका है
मन हम सबका बहुत दुखा है
सूरज बाबा घर से निकलो
चाहे इधर-उधर से निकलो
हम बच्चों की भी कुछ सुध लो
ये जिम्मेदारी तुम खुद लो
सूरज इतना धूप दिखा रे
हम सब अपना रूप निखारें
सड़क किनारे सोने वाले लोगों का भी ख्याल करो
निद्रा-तंद्रा छोड़, जगो और उगो, उठो कुछ चाल करो
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