शहर में कुछ गाँव होते
काव्य साहित्य | कविता राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव'21 Feb 2019
शहर में कुछ गाँव होते, गाँव में कोई शहर होता
बैठते मिल बात करते, ऐसा कोई पहर होता
दोनों ही घर से निकलते, मिलके जी भर बात करते
ऐसा कोई ठौर होता, ऐसा कोई ठहर होता
तुम उसे पीकर बुझाती प्यास, उसमें डूबती भी
या ख़ुदा मैं दिल से निकली प्यार की वह लहर होता
किसने लिखकर छोड़ दी कविता, इसे मैं कैसे गाऊँ
इसमें कुछ लय-ताल होते, इसमें कोई बहर होता
मौत के सौदागरों को भी पता चलता, अगर
उनके भी सब छूट जाते, ऐसा कोई कहर होता
पी ही जाता एक झटके में उसे पूरा कि मैं
हर ज़हर को काट दे, गर ऐसा कोई ज़हर होता
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