अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

साथ छूटा, स्वप्न रूठे

मूल लेखिका : विद्या पणिकर (Love, loss and nightmares)
अनुवादक : राघवेन्द्र पाण्डेय ‘राघव’

 

नींद
चुपके-चुपके आती है
घेर लेती है मुझे
आँखे बंद हैं
मन मंद है
पर सोई नहीं हूँ अभी
मन मेरा
सुवासित फूलों से मह-मह
तुम्हारे प्यार के आगोश में
अब भी !
यह गंध
मन मकरंद को
दौड़ाती यहाँ-वहाँ
जूड़े में अपने
हरसिंगार लगाए

प्यार
एक खूबसूरत दुल्हन है

नींद ने घेरा बढ़ाया
आँखें नाचती रहीं
पलकों के नीचे
वह प्यारी दुल्हन
बीमार है
दुबकी पड़ी है
चादर के नीचे
पर सामने तुम हो
सो, खुश है सायास !

कहाँ हूँ मैं !
नहीं पता कुछ
नींद ले उड़ी मुझे
गहन गर्त में !
जा गिरी हूँ
अँधियारी कोठरी के भीतर
जम सी गई हूँ
असुरक्षित हूँ
भयभीत हूँ

कौन है यहाँ !
यह रक्त गंध
ये छिटके हुए लोथड़े
कहाँ हूँ मैं
मेरी आवाज़
कोई सुनता है क्या !

ओह !
यह श्मशान है शायद,
जहाँ कुचल दिए जाते हैं सपने
दफना दी जाती है आशाएँ
यहाँ मैं सिरकटी लाश हूँ
लुढ़क रही हूँ
गिर रही हूँ
मर रही हूँ ...

जागी मैं सहसा !
उफ्फ!
फिर से वही सपना
वही दु:स्वप्न
जो कल
जो परसों
जो बरसों से
हर दिन दिखता है
मुझे
तुम्हें खोने के बाद !

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

अकेले ही
|

मराठी कविता: एकटाच मूल कवि: हेमंत गोविंद…

अजनबी औरत
|

सिंध की लेखिका- अतिया दाऊद  हिंदी अनुवाद…

अनुकरण
|

मूल कवि : उत्तम कांबळे डॉ. कोल्हारे दत्ता…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

किशोर साहित्य कविता

कविता-मुक्तक

गीत-नवगीत

ग़ज़ल

कविता

अनूदित कविता

नज़्म

बाल साहित्य कविता

हास्य-व्यंग्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं