माना कि उसमें जज़्बा ख़ूब
शायरी | नज़्म राघवेन्द्र पाण्डेय 'राघव'21 Feb 2019
माना कि उसमें जज़्बा ख़ूब, ताव बहुत है
पर ज़िंदगी के दरमियां बिखराव बहुत है
दुनियाँ के रंगमंच में किरदार निभाते
कुछ लोगों के जीवन में हाव-भाव बहुत है
बचकर रहूँ तो कैसे मैं दुनियाँ की चमक से
हर पग पे ही तिलिस्म है भटकाव बहुत है
जिसपे किया निसार दिल-ओ-जां उसी ने सुन
दिल में उतर के दिल को दिया घाव बहुत है
बेटे को हर समय जो पिता डाँटता है तो
मतलब है इसका बेटे से लगाव बहुत है
मिलता रहा होके शहर में भी सभी से मैं
मेरे ज़ेहन में क्यूँकि अब भी गाँव बहुत है
कोयल है चुप - उदास यहाँ इसलिए कि अब
महफ़िल में चारों ओर काँव-काँव बहुत है
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Suresh sangwan 2019/04/05 12:15 PM
वाह वाह वाह क्या कमाल की रचना है , दिल को छू लेने वाली इस रचना के लिए ढेरों मुबारकबाद कुबूल करें हमें इस रचना से लगाव बहुत है