किताबें
काव्य साहित्य | कविता रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’20 Feb 2019
जीवन की मुस्कान किताबें
बहुत बड़ा वरदान किताबें।
गूँगे का मुँह बनकर बोलें
बहरे के हैं कान किताबें।
अन्धे की आँखें बन जाएँ
ऐसी हैं दिनमान किताबें।
हीरे -मोती से भी बढ़कर
बेशकीमती खान किताबें।
जिन के आने से मन हरषे
ऐसी हैं मेहमान किताबें।
क्या बुरा यहाँ क्या है अच्छा
करती हैं पहचान किताबें।
धार प्रेम की बहती इनमें
फैलाती हैं ज्ञान किताबें।
राहों की हर मुश्किल को
कर देती आसान किताबें।
इस धरती पर सबके ऊपर
सबसे बड़ा अहसान किताबें।
इनसे अच्छा दोस्त न कोई
करती हैं कल्याण किताबें।
कभी नहीं ये बूढ़ी होती
रहती सदा जवान किताबें।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- आग के ही बीच में
- इस रजनी में
- उगाने होंगे अनगिन पेड़
- उजाले
- एक बच्चे की हँसी
- काँपती किरनें
- किताबें
- क्या करें?
- खाट पर पड़ी लड़की
- घाटी में धूप
- जीवन के ये पल
- नव वर्ष
- बच्चे और पौधे
- बरसाती नदी
- बहता जल
- बहुत बोल चुके
- भोर की किरन
- मुझे आस है
- मेघ छाए
- मेरी माँ
- मैं खुश हूँ
- मैं घर लौटा
- शृंगार है हिन्दी
- सदा कामना मेरी
- साँस
- हैं कहाँ वे लोग?
- ज़रूरी है
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
गीत-नवगीत
लघुकथा
सामाजिक आलेख
हास्य-व्यंग्य कविता
पुस्तक समीक्षा
बाल साहित्य कहानी
कविता-मुक्तक
दोहे
कविता-माहिया
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं