रस्म
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. सुरंगमा यादव15 Jul 2021 (अंक: 185, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
"मम्मा चलो न देखो सुप्रिया के चाचाजी दूल्हा बने हैं। वे सब कुएँ के पास खड़े हैं। उसकी दादी कुएँ में पैर लटकाकर बैठी हैं। चाचा जी उन्हें मना रहे हैं।"
विवाह के अवसर पर होने वाली कुआँ पूजन की रस्म देखकर आठ वर्ष का बन्टू अपनी माँ के पास आकर तरह-तरह के सवाल पूछता है।
"मम्मा! इतनी ख़ुशी के मौक़े पर सुप्रिया की दादी कुएँ में क्यों कूद रही हैं?"
बेटे की बात सुनकर वह हँसते हुए बोली, "बेटा वे कुएँ में नहीं कूद रहीं हैं। कुआँ पूजन की रस्म है। इसी समय माँ अपने बेटे से प्राँमिस कराती है कि वह विवाह के बाद भी उनकी अच्छी तरह से देखभाल करेगा।"
"तब पापा ने भी शादी के समय दादी माँ से यही प्रॉमिस किया होगा?"
"हाँ, वो एक रस्म है।"
"तब वे अपना प्रॉमिस पूरा क्यों नहीं करते? क्यों दादी को वृद्धाश्रम में छोड़ आये? चीटिंग . . . बताओ न . . . बताओ न . . .।"
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