शृंगार है हिन्दी
काव्य साहित्य | कविता रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’4 Feb 2019
खुसरो के हृदय का उद्गार है हिन्दी।
कबीर के दोहों का संसार है हिन्दी॥
मीरा के मन की पीर बन गूँजती घर-घर।
सूर के सागर - सा विस्तार है हिन्दी॥
जन-जन के मानस में, बस गई जो गहरे तक।
तुलसी के 'मानस' का विस्तार है हिन्दी॥
दादू और रैदास ने गाया है झूमकर।
छू गई है मन के सभी तार है हिन्दी॥
'सत्यार्थप्रकाश' बन अँधेरा मिटा दिया।
टंकारा के दयानन्द की टंकार है हिन्दी॥
गाँधी की वाणी बन भारत जगा दिया।
आज़ादी के गीतों की ललकार है हिन्दी॥
'कामायनी' का 'उर्वशी’ का रूप है इसमें।
'आँसू’ की करुण, सहज जलधार है हिन्दी॥
प्रसाद ने हिमाद्रि से ऊँचा उठा दिया।
निराला की वीणा वादिनी झंकार है हिन्दी॥
पीड़ित की पीर घुलकर यह 'गोदान' बन गई।
भारत का है गौरव, श्रृंगार है हिन्दी॥
'मधुशाला' की मधुरता है इसमें घुली हुई।
दिनकर के 'द्वापर' की हुंकार है हिन्दी॥
भारत को समझना है तो जानिए इसको।
दुनिया भर में पा रही विस्तार है हिन्दी॥
सबके दिलों को जोड़ने का काम कर रही।
देश का स्वाभिमान है, आधार है हिन्दी॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- आग के ही बीच में
- इस रजनी में
- उगाने होंगे अनगिन पेड़
- उजाले
- एक बच्चे की हँसी
- काँपती किरनें
- किताबें
- क्या करें?
- खाट पर पड़ी लड़की
- घाटी में धूप
- जीवन के ये पल
- नव वर्ष
- बच्चे और पौधे
- बरसाती नदी
- बहता जल
- बहुत बोल चुके
- भोर की किरन
- मुझे आस है
- मेघ छाए
- मेरी माँ
- मैं खुश हूँ
- मैं घर लौटा
- शृंगार है हिन्दी
- सदा कामना मेरी
- साँस
- हैं कहाँ वे लोग?
- ज़रूरी है
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
गीत-नवगीत
लघुकथा
सामाजिक आलेख
हास्य-व्यंग्य कविता
पुस्तक समीक्षा
बाल साहित्य कहानी
कविता-मुक्तक
दोहे
कविता-माहिया
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं