उजाले
काव्य साहित्य | कविता रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’21 Feb 2019
उम्र भर रहते नहीं हैं
संग में सबके उजाले।
हैसियत पहचानते हैं
ज़िन्दगी के दौर काले।
तुम थके हो मान लेते-
हैं सफ़र यह ज़िन्दगी का।
रोकता रस्ता न कोई
प्यार का या बन्दगी का।
हैं यहीं मुस्कान मन की
हैं यहीं पर दर्द-छाले।
तुम हँसोगे ये अँधेरा,
दूर होता जाएगा।
तुम हँसोगे रास्ता भी
गाएगा मुस्कराएगा।
बैठना मत मोड़ पर तू
दीप देहरी पर जलाले।
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