अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

चराग़े-दिल

अहसास की रोशनी- 'चराग़े‍-दिल' : समीक्षकः मा.ना.नरहरि

पुस्तक: चराग़े‍-दिल
लेखिका: देवी नागरानी
प्रकाशक: सरला प्रकाशन, 1586/1ई, नवीन शहादरा, दिल्ली - 110032
मूल्य:  २००/- रु० , १० डालर
सम्पर्क:  devi1941@yahoo.com

श्रीमती देवी नागरानी की सद्यः प्रकाशित ग़ज़ल -सँग्रह उनकी नवनीतम पुस्तक है। अपने बच्चों- कविता, दिव्या और दीपक को उन्होंने अहसासों का गुलदस्ता भेँट किया है इस किताब के मारफ़त।
    ग़ज़ल के विषय में श्री आर.पी. शर्मा 'महरिष्' इस किताब में छपे अपने लेख 'देवी दिलकश ज़ुबान है तेरी' में कहते हैः

"ग़ज़ल उर्दू साहित्य की एक ऐसी विधा है जिसका जादू आजकल सबको सम्मोहित किए हुए है। ग़ज़ल ने करोड़ों दिलों की धड़कनों को स्वर दिया है। इस विधा में सचमुच ऐसा कुछ है जो आज यह अनगिनत होंठों की थरथराहट और लेखनी की चाहत बन गई है। ग़ज़ल कहने के लिये हमें कुशल शिल्पी बनना होता है, ताकि हम शब्दों को तराश कर उन्हें मूर्त रूप दे सकें, उनकी जड़ता में अर्थपूर्ण प्राणों का संचार कर सकें तथा ग़ज़ल के प्रत्येक शेर की दो पंक्तियाँ या मिसरों में अपने भावों, उद्‌गारों, अनुभूतियों आदि के उमड़ते हुए सैलाब को 'मुट्ठी में आकाश, कठौती में गंगा, कूजे में दरिया, बूँद में सागर के समान समेट कर भर सकें।"

अब देखना ये है कि श्रीमती देवी नागरानी ग़ज़ल के विषय में क्या कहती हैः

"कुछ खुशी की किरणें, कुछ पिघलता दर्द आँख की पोर से बहता हुआ, कुछ शबनमी सी ताज़गी अहसासों में, तो कभी भँवर गुफा की गहराइयों से उठती उस गूँज को सुनने की तड़प मन में जब जाग उठती है तब कला का जन्म होता है। सोच की भाषा बोलने लगती है, चलने लगती है, कभी कभी तो चीखने भी लगती है।यह कविता बस और कुछ नहीं, केवल मन के भाव प्रकट करने का माध्यम है, चाहे वह गीत हो या ग़ज़ल, रुबाई हो या कोई लेख, इन्हें शब्दों का लिबास पहना कर एक आक्रति तैयार करते हैं जो हमारी सोच की उपज होती है।"

चराग़े‍-दिल' अहसासों का गुलदस्ता है जिसमें मेरे मन के गुलशन के अनेक फूल हैं जो कभी महकते है, कभी मुस्कराकर मुरझा जाते हैं, तो कभी पतझड़ के मौसम के साए में बिखर जाते है, पर दिल का चराग़ फिर भी जलता रहता है। जलते बुझते इन चराग़ों की रोशनी से अपने ह्रदय के आँगन को रोशन रखने की कोशिश में ये शब्द बोलने लगते हैं, जिन्हें हम ग़ज़ल कहते हैं।"
वह कहती हैः  

न बुझा सकेंगी ये आँधियाँ
ये चराग़े-दिल है दिया नहीं।

शब्दों के तीर छोड़े गये मुझ पे इस तरह
हर ज़ख़्म का हमारे दिल पर निशान था।

और ऐसी स्थिति आने पर वह दिस्तों के बारे में कहती हैः

ग़ैर तो ग़ैर है चलो छोड़ो
हम तो बस दोस्तों से डरते हें।

मुझे डर है देवी तो बस दोस्तों से
मुझे दुशमनों ने दिया है सहारा।

लेकिन इस डर को वह अपनी माँ की दुआओं से जीतने की कोशिश करती हैं, सुने वो क्या कहती हैः

लेके माँ की दुआ मैं निकली हूँ
दूर तक रास्तों में साए हैं।

जो रोशन मेरी आरज़ू का दिया है
मिरे साथ वो मेरी माँ की दुआ है।

अपनी माँ के साए और दुआओं के साथ जब वो खुद को बयान करती है तो देखिये किस नज़ाकत के साथ बयान कर रही हैं:

मैं तो नायाब इक नगीना हूँ
अपने ही साँस में जड़ी हूँ मैं।

ये नगीना जब अपने विचारों और सद्कर्मों से चमकता है तो देवी कहती हैः

यूँ ख़्यालों में पुख़्तगी आई
बीज से पेड़ बन गए जैसे।

और ये पुख़्तगी जब उन्हें उस स्वार्थी समाज की बात करने के लिये आमदा करती है तो उनका विचार किस कदर साफ़ बयानी दिखाता हैः

चाहत, वफ़ा, मुहब्बत की हो रही तिजारत
रिशते तमाम आख़िर सिक्कों में ढ़ल रहे हैं।

कितने नकाब ओढ़ के देवी दिये फरेब
जो बेनकाब कर सके वो आईना नहीं।

किस किस से बाचाऊँ अपने घर
जब हाथ में है सबके पत्थर।

इसी दौर से गुज़रते हुए अपने वजूद की पहचान पाते हुए कह रही हैः

ढूँढा किये वजूद को अपने ही आस पास
देखा जो आईना तो अचानक बिखर गए।

इस बिखरने में जब कभी उन्हें प्यार का इशारा सहारे के तौर पर मिलता है तो अपने अहसासों को किस अँदाज, में बयाँ कर रही हैः

कुछ तो गुस्ताख़ियों को मुहलत दो
अपनी पलकों को हम झुकाते हैं।

वो तो देवी है दिल की नादानी
जुर्म मुझसे कहाँ हुआ ह व।

जिसने रक्खा है कैद में मुझको
खुद रिहाई है माँगता मुझसे।

वो मनाने तो आया मुझे
रूठ कर ख़ुद गया है मगर।

इन अहसासों से गुज़रते हुए नागरानी जी के दिल में एक खामोशी कहीं बहुत गहरे तक छिप कर बैठ जाती है, लेकिन कमाल है यह ख़ामोशी बोलती है, चुप रह कर बात करती है, वह बड़ी खूबी से इस बात का जि़क्र करते हुए कह रही हैः

खामुशी क्या है तुम समझ लोगे
पत्थरों से भी बात कर देखो।

कहते हैं बिन कान दीवारें भी सुन लेती हैं बात
ग़ौर से सुन कर तो देखो तुम कभी ख़ामोशियाँ।

इन ख़ामोशियों को जब वह सुनती हैं तो उनकी आँखें तर हो उठती हैं

हुई नम क्यों ये आँखें बैठकर इस बज़्म में देवी
किसी ने ग़म को सुर और ताल में गा कर सुनाया है।

इस ग़म से निजात पाने के लिये वह बंदगी की बात किस नज़ाकत से ज़ाहिर कर रही हैं:

ख़ुद ब ख़ुद आ मिले ख़ुदा मुझसे
कुछ तो अहसास बँदगी में हो।

इसी बंदगी के साथ साथ वो आदमी की मेहनत, ईमानदारी और लगन से किये गए काम के नतीजे को देख कर क्या महसूस करती है, देखियेः

यूँ तराशा है उनको शिल्पी ने
जान सी पड़ गई शिलाओं में।

    श्रीमती देवी नागरानी ने दुःख सुख, सहानूभूति, साँसारिक उठा-पटक, प्रेम, वियोग, समाज के अनेक चेहरों को उजगार किया है अपने शेरों में। श्री आर. पी. शर्मा 'महरिष्' जी की इस्लाह से छपी यह पुस्तक दोष मुक्त है। देवी नागरानी ने 'महरिष्' जी के लिये कहा हैः

सारा आकाश नाप लेता है
कितनी ऊँची उड़ान है तेरी।

यह ग़ज़ल-संग्रह ग़ज़ल लिखने वालों में अपना स्थान बनायेगा ऐसी मुझे आशा है,

मा.ना.नरहरि
Shripal Van no।1, C wing, G-10
Kharodi Naka, Dist Thana
Virar E 401303


पुस्तक की विषय सूची

  1. अहसास की रोशनी- 'चराग़े‍-दिल' : समीक्षकः मा.ना.नरहरि
  2. चराग़े-दिल - कुछ विचार
  3. कविता क्या है? : देवी नागरानी
  4. कितने पिये हैं दर्द के, आँसू बताऊँ क्या
  5. दीवारो-दर थे, छत थी वो अच्छा मकान था
  6. देखकर मौसमों के असर रो दिये
  7. उड़ गए बालो-पर उड़ानों में
  8. आँधियों के भी पर कतरते हैं
  9. ताज़गी कुछ नहीं हवाओं में
  10. या बहारों का ही ये मौसम नहीं
  11. डर उसे फिर न रात का होगा
  12. बारिशों में बहुत नहाए हैं
  13. लबों पर गिले यूँ भी आते रहे हैं
  14. तारों का नूर लेकर ये रात ढल रही है
  15. अपने जवान हुस्न का सदक़ा उतार दे
  16. बाक़ी न तेरी याद की परछाइयाँ रहीं
  17. सपने कभी आँखों में बसाए नहीं हमने
  18. कैसे दावा करूँ मैं
  19. झूठ सच के बयान में रक्खा
  20. तू न था कोई और था फिर भी
  21. गर्दिशों ने बहुत सताया है
  22. दर्द बनकर समा गया दिल में
  23. छीन ली मुझसे मौसम ने आज़ादियाँ
  24. चराग़ों ने अपने ही घर को जलाया
  25. हिज्र में उसके जल रहे जैसे
  26. तेरे क़दमों में मेरा सजदा है
  27. दिल को हम कब उदास रखते हैं
  28. ख़्यालों ख़्वाब में ही महफिलें सजाता है
  29. हमने चाहा था क्या और क्या दे गई
  30. चोट ताज़ा कभी जो खाते हैं
  31. वो अदा प्यार भरी याद मुझे है अब तक
  32. ठहराव ज़िंदगी में दुबारा नहीं मिला
  33. जाने क्या कुछ हुई ख़ता मुझसे
  34. अँधेरी गली में मेरा घर
  35. ये सायबां है जहां, मुझको सर छुपाने दो
  36. ख़ता अब बनी है सज़ा का फ़साना
  37. बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
  38. बुझे दीप को जो जलाती रही है
  39. कोई षडयंत्र रच रहा है क्या
  40. तर्क कर के दोस्ती फिरता है क्यों
  41. कितने आफ़ात से लड़ी हूँ मैं
  42. यूँ उसकी बेवफ़ाई का मुझको गिला न था
  43. रिश्ता तो सब ही जताते हैं
  44. बहारों का आया है मौसम सुहाना
  45. राज़ दिल में छिपाए है वो किस कदर
  46. नहीं उसने हरगिज रज़ा रब की पाई
  47. दीवार दर तो ठीक थे, बीमार दिल वहाँ
  48. हक़ीक़त में हमदर्द है वो हमारा
  49. सोच को मेरी नई वो इक रवानी दे गया
  50. सोच की चट्टान पर बैठी रही
  51. है गर्दिश में क़िस्मत का अब भी सितारा
  52. ज़िंदगी है ये, ऐ बेख़बर
  53. यूँ मिलके वो गया है कि मेहमान था कोई
  54. बददुआओं का है ये असर
  55. शबनमी होंठ ने छुआ जैसे
  56. दिल अकेला कहाँ रहा होगा
  57. मजबूरियों में भीगता, हर आदमी यहाँ
  58. वो नींद में आना भूल गए
  59. इक नश्शा-सा बेख़ुदी में हो
  60. मिट्टी का मेरा घर अभी पूरा बना नहीं
  61. वैसे तो अपने बीच नहीं है कोई ख़ुदा
  62. गुफ़्तगू हमसे वो करे जैसे
  63. राहत न मेरा साथ निभाए तो क्या करूँ?
  64. छोड़ आसानियाँ गईं
  65. शम्अ की लौ पे जल रहा है वो
  66. ज़ख़्म दिल का अब भरा तो चाहिये
  67. शहर अरमानों का जले अब तो
  68. उसे इश्क क्या है पता नहीं
  69. खुबसूरत दुकान है तेरी
  70. अपने मक़्सद से हटा कर तू नज़र
  71. फिर खुला मैंने दिल का दर रक्खा
  72. वफ़ाओं पे मेरी जफ़ा छा गई
  73. गई मुझको ये हवा जैसे
  74. किस से बचाऊँ अपना घर
  75. ज़िदगी यूँ भी जादू चलाती रही
  76. बिजलियाँ यूँ गिरीं उधर जैसे
  77. सुनामी की ज़द में रही जिंदगानी
  78. कैसी हवा चली है मौसम बदल रहे हैं
  79. कितनी लाचार कितनी बिस्मिल मैं
  80. किसी से कभी बात दिल की न कहना
  81. ज़िंदगी इस तरह से जीता हूँ
  82. क्या बताऊँ तुम्हें मैं कैसी हूँ
  83. कुछ तो इसमें भी राज़ गहरे हैं
  84. बेसबब बेरुख़ी भी होती है
  85. बंद हैं खिड़कियाँ मकानों की
  86. ज़िंदगी रंग क्या दिखाती है
  87. ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
  88. नगर पत्थरों का नहीं आशना है
  89. रेत पर घर जो अब बनाया है
  90. चलें तो चलें फिक्र की आँधियाँ
  91. दर्द से दिल सजा रहे हो क्यों
  92. स्वप्न आँखों में बसा पाए न हम
  93. देखी तबदीलियाँ जमानों में
  94. लगती है मन को अच्छी
  95. ज़िंदगी मान लें बेवफ़ा हो गई
  96. पंछी उड़ान भरने से पहले ही डर गए
  97. ग़म के मारों में मिलेगा, तुमको मेरा नाम भी
  98. वो रूठा रहेगा उसूलों से जब तक
  99. जितना भी बोझ हम उठाते हैं
  100. जो मुझे मिल न पाया रुलाता रहा
  101. ख़ुशी का भी छुपा ग़म में कभी सामान होता है
  102. हैरान है ज़माना, बड़ा काम कर गए
  103. न सावन है न भादों है न बादल का ही साया है
  104. भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
  105. हम अभी से क्या बताएँ
  106. मिलने की हर खुशी में बिछड़ने का ग़म हुआ
  107. गुज़रे हुए सुलूक पे सोचो न इस क़द
  108. देते हैं ज़ख़्म ख़ार तो देते महक गुलाब
  109. किस्मत हमारी हमसे ही माँगे है अब हिसाब
  110. आँसुओं का रोक पाना कितना मुश्किल हो गया
  111. कौन किसकी जानता है आजकल दुश्वारियाँ
  112. साथ चलते देखे हमने हादसों के काफ़िले
  113. मेरा शुमार कर लिया नज़ारों में जाने क्यों
  114. शहर में उजड़ी हुई देखी
  115. क्यों मचलता है माजरा क्या है
  116. क्यों खुशी मेरे घर नहीं आती
  117. मेरा वजूद टूटके बिखरा यहीं कहीं
  118. रेत पर तुम बनाके घर देखो
  119. दोस्तों का है अजब ढब, दोस्ती के नाम पर
  120. उस शिकारी से ये पूछो पर क़तरना भी है क्या
  121. देख कर तिरछी निगाहों से वो मुस्काते हैं
  122. मेरे वतन की ख़ुशबू

लेखक की पुस्तकें

  1. पंद्रह सिंधी कहानियाँ
  2. एक थका हुआ सच
  3. प्रांत-प्रांत की कहानियाँ
  4. चराग़े-दिल

लेखक की अनूदित पुस्तकें

  1. एक थका हुआ सच

लेखक की अन्य कृतियाँ

साहित्यिक आलेख

कहानी

अनूदित कहानी

पुस्तक समीक्षा

बात-चीत

ग़ज़ल

अनूदित कविता

पुस्तक चर्चा

बाल साहित्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

विशेषांक में

बात-चीत