अभी जगे हैं
काव्य साहित्य | कविता सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’15 Jan 2020 (अंक: 148, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
अकेले
न होने का
अहसास दिलाती,
घड़ी की
साफ़ सुनाई देती
टिक टिक।
खिड़की से
झाँकता धुँधला सा
सरकारी टयूबलाइट
का प्रकाश।
रुक रुक कर
गंतव्य की ओर
भागी जा रही
कभी तेज़ कभी मद्धिम ट्रेन की आवाज़।
सन्नाटे को चीरती
पुलिस की
गाड़ी का सायरन।
और
दिमाग़ में किसी की
यादों का चलचित्र।
बस इतने ही हैं
जो अभी जगे हैं।
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