मुद्दे और भावनाएँ
काव्य साहित्य | कविता सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’1 May 2019
दफ़ना दूँ
किसी
पत्थर के
नीचे
गहरे -
भावनाओं को
न निकल सकें
बाहर।
अँधेर बहुत है...
शामिल हो
जाऊँ
भीड़ में,
भावनाओं के
खेल में।
बंद कमरे
चुस्कियों के
बीच बहस
मुद्दे...
किसान...
राम... मंदिर...
धर्म संसद...
आरक्षण.....
युवा....।
एका एक
गहरी दबी
भावनाओं के
बीच
प्रकट हुई
हनुमान जी की
पूँछ...
जाति कुंडली
के
लिए
भटक रही।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अभी जगे हैं
- इंतज़ार
- इशारा
- उदास दिन
- कविता
- किताब
- गवाह
- घुटन
- डर (सत्येन्द्र कुमार मिश्र ’शरत’)
- तेरी यादों की चिट्ठियाँ
- दिनचर्या
- नियमों की केंचुल
- पथ (सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’)
- पहेली
- प्रयाग
- प्रेम (सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’)
- बातें
- बाज़ार
- बिना नींद के सपने
- भूख (सत्येंद्र कुमार मिश्र)
- मछलियाँ
- मद्धिम मुस्कान
- महसूस
- मुद्दे और भावनाएँ
- राजनीति
- राज़
- लड़ने को तैयार हैं
- लौट चलें
- वे पत्थर नहीं हैं
- व्यस्त
- शब्द
- शहर (सत्येन्द्र कुमार मिश्र)
- सीमाएँ
- सुंदरता
- सौंपता हूँ तुम्हें
- फ़र्क
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं