फ़र्क
काव्य साहित्य | कविता सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’15 Jun 2019
जब किसी
चीज़ का
विश्वास ना हो,
कुछ
अकस्मात हो,
कुछ
अकल्पनीय हो,
बिना योग के
संयोग हो,
तब
यह सब
सपना नहीं
तो सपने जैसा
अवश्य लगता है।
सोचता हूँ
तब सपने में
और
इसमें फ़र्क क्या है
हाँ
फ़र्क इतना है ,
यह सब
हम खुली आँखों से
देखते हैं
और सपना
बंद आँखों से।
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