शहर (सत्येन्द्र कुमार मिश्र)
काव्य साहित्य | कविता सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’15 Oct 2019
मुर्दों से भरे शहर,
दिल कटे-फटे
चिथड़ों से,
ऊब. . घुटन
कृत्रिम
मशीनी जीवन।
जिऊँ तो जिऊँ कैसे
घोर अकेलापन।
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