गवाह
काव्य साहित्य | कविता सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’1 Sep 2019
चाँदनी रात
गर्म साँस
तपती द~ह
करोड़ों क़समों का
युगों से
गवाह बना,
ए चाँद,
बता
कितनी क़समें
कितनी बातें
कितने वादे
पूरे हुए
कितने अधूरे रहे
कुछ हिसाब है तेरे पास!
रहने दे
तू केवल देखता है
बोलता कुछ नहीं।
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