लड़ने को तैयार हैं
काव्य साहित्य | कविता सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’1 Apr 2020 (अंक: 153, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
1.
कोरोना 
एक महामारी है 
विश्व के लिए,
हमारे लिए अवसर।
लोग भूखे थे
कई दिनों से,
क़ैद थे घरों में
जेल में बंद क़ैदी की तरह नज़रबंद,
सब 
एक दूसरे से 
अलग थे,
लेकिन सब 
एक दूसरे के साथ 
भावना से बँधे थे।
पहली बार 
मैंने देखा 
कोई किसी का 
विरोध नहीं कर रहा,
सबकी 
चर्चा एक थी,
सबकी 
चिंता एक थी,
सबकी 
लड़ाई एक थी।
विश्व डरा हुआ था
लेकिन 
हम निडर थे, 
पर सतर्क थे
मैं मानता हूँ 
कि 
हमारे पास 
विश्वस्तर की सुविधाएँ नहीं हैं,
लेकिन हम सतर्क हैं
और
हर चुनौती को 
सहर्ष
स्वीकार करते हैं।
इस 
विविधता भरे 
देश में
जहाँ एक हाथ 
दूसरे हाथ का 
घोर विरोधी है,
मुझे 
पहली बार 
लगा कि 
मेरे देश के 
प्रधानमंत्री के विचार 
और एक मज़दूर के विचार एक हैं।
हाँ अब हम 
लड़ने को तैयार हैं
किसी भी लड़ाई से।
2.
कोरोना 
के डर से 
एकांतवास कर रहा हूँ,
सबसे अलग- थलग।
झरोखे से 
एक नन्ही
सी चिड़िया
मेरे एकांत को
दूर कर रही है।
बहुत दिनों बाद
देखा है 
यह छोटी सी
चिड़िया 
जिसे कोई डर नहीं
कोरोना से।
वह
फुदक रही है
कमरे में इधर से उधर
और हम ख़ौफ़ में
जी रहे हैं।
3.
सब क़ैद हैं 
घरों में।
पसरा है सन्नाटा 
चारों तरफ़,
मरघट से लगने लगे हैं 
चकाचौंध भरे शहर।
भगवान ने भी
बंद कर लिए हैं 
मंदिर के दरवाज़े
कोरोना के डर से।
अब कोई 
जाए तो जाए शरण किसकी,
विश्वास करे ईश्वर का या स्वयं का।
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