प्रयाग
काव्य साहित्य | कविता सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’1 Apr 2019
भक्ति की
रोशनी में,
नहाया शहर।
दिलों में
श्रद्धा
संजोए शहर।
नाम बदला
युग बदला
शासक बदले
पर
बदला नहीं
शहर।
हर वर्ष
संगम तीरे
श्रद्धा विश्वास भक्ति
का सजता शहर।
दौड़ी चली आती
भीड़ की भीड़
आतुर
दूर दूर से
मानो उन्हें
अपने पास
बुलाता शहर।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अभी जगे हैं
- इंतज़ार
- इशारा
- उदास दिन
- कविता
- किताब
- गवाह
- घुटन
- डर (सत्येन्द्र कुमार मिश्र ’शरत’)
- तेरी यादों की चिट्ठियाँ
- दिनचर्या
- नियमों की केंचुल
- पथ (सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’)
- पहेली
- प्रयाग
- प्रेम (सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’)
- बातें
- बाज़ार
- बिना नींद के सपने
- भूख (सत्येंद्र कुमार मिश्र)
- मछलियाँ
- मद्धिम मुस्कान
- महसूस
- मुद्दे और भावनाएँ
- राजनीति
- राज़
- लड़ने को तैयार हैं
- लौट चलें
- वे पत्थर नहीं हैं
- व्यस्त
- शब्द
- शहर (सत्येन्द्र कुमार मिश्र)
- सीमाएँ
- सुंदरता
- सौंपता हूँ तुम्हें
- फ़र्क
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं