राजनीति
काव्य साहित्य | कविता सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’15 Apr 2019
राजनीति
विरासत बन कर
रह गयी है
एक
परिवार की।
चले
आइये
सीना तान कर
मुस्कुराते हुए,
अंधी
जनता सदियों से
करबद्ध खड़ी है
प्रतिक्षारत।
पिछलग्गू
बनना स्वभाव में है
जो न बदला है
और न
शायद बदलेगा।
हाय!
क्या करूँ
बुद्धि... धर्म... सम्प्रदाय पर सवार है
राजनीति
और
देश की आँखें बंद।
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