मद्धिम मुस्कान
काव्य साहित्य | कविता सत्येंद्र कुमार मिश्र ’शरत्’15 May 2019
उसकी
मुस्कान में मुझे
कविता दिखाई देती है।
होंठ हल्के से
खुले
दिल की
तस्वीर
उसके
चमकते चेहरे पर
बन गई थी।
अनायास
उभरी थी
अथवा
किसी कल्पना का
स्वरूप था
कह नहीं सकता
लेकिन
इतना तो है
खिले फूलों,
चमकते सितारों,
तथा
उसकी
मुस्कान में
मैं
फ़र्क नहीं समझता।
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