अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस और असली हक़ीक़त
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार15 Mar 2025 (अंक: 273, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
1. सम्मान की औपचारिकता
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस यह दिवस आधा दशमलव महिलाओं के लिए भारत में होता है।
महिला दिवस पर कुछ महिलाओं को मंच पर बुलाकर सम्मानित किया जाएगा, तालियाँ बजेंगी, फोटो खिंचेंगी, लेकिन अगले ही दिन वही महिलाएँ फिर से उसी भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में लौट जाएँगी।
2. शक्ति के कई रूप–कभी काली, कभी दुर्गा
महिलाएँ हर रूप में ढलने की क्षमता रखती हैं—जब ज़रूरत पड़ी, तो काली बन गईं, जब परिवार को सँभालना पड़ा, तो दुर्गा बन गईं। और उनके पास “हथियारों” की भी कमी नहीं—चप्पल, सैंडल, बेलन, चमचा—सब कुछ स्टैंडबाय पर रहता है!
3. आँसुओं की अनोखी दुनिया
कुछ महिलाएँ ऐसी होती हैं जो हर मौक़े पर रो देती हैं—सुबह रोना, शाम रोना, तक़दीर पर रोना, क़िस्मत पर रोना। उनकी आँखों से आँसू ऐसे झरते हैं, जैसे कोई तालाब भर रहा हो!
4. महल्ले की न्यूज़ चैनल
कुछ महिलाओं को किसी भी न्यूज़ चैनल से टक्कर देने का हुनर आता है। गली-महल्ले की हर ख़बर इनसे पहले कोई और जान ही नहीं सकता। किसका बेटा पिटकर आया, किसके घर रिश्ता तय हुआ, कौन कहाँ गया—इनका “ख़ुफ़िया तंत्र” किसी सुरक्षा एजेंसी से कम नहीं!
5. मौन साधना वाली महिलाएँ
कुछ महिलाएँ ऐसी होती हैं, जिन्हें बोलना नहीं आता। चाहे कितना भी पूछ लो, बस हल्की-सी मुस्कान देकर चुप हो जाती हैं। न हँसी, न ख़ुशी, बस चुप्पी। मानो युधिष्ठिर के श्राप के बाद भी ये अपवाद रह गई हों!
6. मार्केट की महारानी
कुछ महिलाएँ घर में टिकती ही नहीं। सुबह हो या शाम, उनके हाथ में कोई न कोई शॉपिंग बैग ज़रूर दिखेगा। दुकानदार भी जानते हैं कि उनकी दुकानें इन्हीं के दम पर चल रही हैं!
महिला महागाथा: सेल्फ़ी, चुग़ली और तकनीक से जंग।
7. कूटनीति की महारथी
कुछ महिलाएँ इतनी कूटनीतिज्ञ होती हैं कि संयुक्त राष्ट्र भी इनके आगे पानी भरता नज़र आए। घर में कौन किससे कब, कितना और क्यों नाराज़ होगा, इसकी रणनीति पहले से ही तैयार होती है। पड़ोस में कौन-कौन से ख़ेमे हैं, कौन किससे जल रहा है और किसका किससे छत्तीस का आँकड़ा है—इनका रिकॉर्ड हमेशा अपडेट रहता है। चुग़ली तो इनकी आत्मा में बसी होती है, जिसे सुनकर ‘नासा’ भी सोच में पड़ जाए कि इतनी तेज़ नेटवर्किंग आख़िर कैसे सम्भव है?
8. तकनीक से भागती देवियाँ
अब तकनीक की बात करें तो 100 में से 50 महिलाएँ सीधा कह देंगी—“हमें नहीं पता, ये हमारा काम नहीं!” और बाक़ी 50 में से 40 बस यूट्यूब पर “फिल्टर कैसे लगाएँ” और “फोटो एडिटिंग” जैसी स्किल्स में माहिर होंगी। लेकिन जैसे ही कोई असली तकनीकी काम आ जाए—फोन हैंग हो गया, प्रिंटर काम नहीं कर रहा या ईमेल भेजना है—तुरंत किसी पुरुष सदस्य को आवाज़ दी जाएगी, मानो यह कोई ‘यज्ञ’ हो और पुरुष इसके ‘पुरोहित’!
9. सेल्फ़ी प्रेम: हम जहाँ खड़े होते हैं, पोज़ वहीं से शुरू होता है
मोबाइल हाथ में आते ही पूरी दुनिया पीछे छूट जाती है। हर मूड, हर कपड़ा, हर लोकेशन का अलग-अलग फोटोशूट ज़रूरी होता है। ”भाई साहब, फोटो क्लिक कर दो” वाले अनुरोध से लेकर “ये वाला एंगल ठीक नहीं आया” वाली शिकायत तक, सेल्फ़ी लेने की बीमारी लाइलाज है। फिर चाहे खाना खाने बैठे हों, मंदिर में दर्शन कर रहे हों, या अस्पताल में मरीज़ देखने गए हों—“पहले एक सेल्फ़ी तो बनती है!”
10. सोशल मीडिया पर जीवन का खुला खाता
अगर किसी महिला की दिनचर्या, भविष्य की योजनाएँ और मनोदशा जाननी हो, तो बस फ़ेसबुक और व्हाट्सएप स्टेटस देख लीजिए। “10 दिन बाद गोवा जा रही हूँ” से लेकर “आज बहुत दुखी हूँ, कोई बात मत करो” तक, हर भावना सार्वजनिक होती है। और इन मासूम अपडेट्स का फ़ायदा उठाने वाले ‘मौका परस्त’ हमेशा तैयार रहते हैं। इनकी सोशल मीडिया उपस्थिति इतनी ज़बरदस्त होती है कि गूगल भी इनके आगे फीका पड़ जाए।
महिला महागाथा: उम्र, जवानी और गहनों की जंग
11. उम्र पूछने की ग़लती मत करना, वरना . . .
महिलाओं की उम्र पूछना एक ऐसा अपराध है, जिसकी सज़ा तुरंत मिल सकती है—या तो घूरकर देखने का दंड, या फिर कटाक्षों की बौछार। चाहे दादी बन जाएँ, नानी बन जाएँ, या पड़पोते खिलाने लगें, उम्र हमेशा 25 से आगे नहीं बढ़ती। “अरे, आप तो 40 की नहीं लगतीं!” जैसी चापलूसी भरी बातें सुनकर उनका आत्मविश्वास आसमान छूने लगता है, और अगर ग़लती से सच बोल दिया, तो आपकी सामाजिक सुरक्षा ख़तरे में पड़ सकती है!
12. जवानी अमर है!
महिलाओं की उम्र कभी बढ़ती नहीं, बस जन्मदिन मनाने की संख्या बढ़ती जाती है। बालों में चाहे चाँदी की परत चढ़ जाए, लेकिन दिल से वो हमेशा कॉलेज वाली उम्र में ही रहती हैं। “हम अभी बूढ़े कहाँ हुए?” यह वाक्य उनकी ज़ुबान पर ऐसे टँगा रहता है जैसे कानों में झुमके। और हाँ, व्हाट्सएप स्टेटस पर “एज इज़ जस्ट ए नंबर” और “यंग ऐट हार्ट” जैसे कोट्स लगाकर वे इस सिद्धांत को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित भी कर देती हैं।
13. गहनों से गहरा प्रेम, मानो दूसरा जन्मसिद्ध अधिकार
अगर कोई चीज़ महिलाओं के दिल के सबसे क़रीब होती है, तो वो हैं उनके गहने। चाहे कोई भी उम्र हो, गहनों के प्रति प्रेम कभी कम नहीं होता। हर एक गहना याद रहता है—कौन-सा झुमका कब लिया, कौन-सी चूड़ी कहाँ से आई, और किस अँगूठी के पीछे कौन-सी भावनात्मक कहानी छिपी है। धोखे से एक चेन या अँगूठी गुम हो जाए, तो घर में मातम छा जाता है, और तब तक हवन-पूजा, गंगाजल छिड़काई, और पूरे महल्ले की तलाशी अभियान जारी रहता है जब तक वह गहना वापस न मिल जाए।
14. गहनों के बिना सफ़र? नामुमकिन!
गहनों के प्रति समर्पण का सबसे बड़ा उदाहरण तब देखने को मिलता है जब किसी की फ़्लाइट छूट जाए, लेकिन वह तब तक सफ़र पर न जाएँ जब तक उनकी खोई हुई झुमकी न मिल जाए। चाहे पूरे परिवार को एयरपोर्ट पर छोड़कर ख़ुद घर वापस आना पड़े, लेकिन बिना गहनों के यात्रा? असम्भव! किसी समारोह में जाने के लिए गहनों का पूरा सेट तैयार करना उतना ही ज़रूरी होता है जितना कि दूल्हे का बारात में आना।
15. गहने, उम्र और जीवन का सतत संघर्ष
गहने और उम्र महिलाओं के जीवन की सबसे दिलचस्प पहेली हैं। उम्र चाहे जितनी भी हो, जवानी कभी ख़त्म नहीं होती, और गहने चाहे कितने भी हो जाएँ, फिर भी “कुछ कमी सी लगती है!” और सबसे मज़ेदार बात, यह संघर्ष तब तक जारी रहता है जब तक कि उनकी विरासत अगली पीढ़ी को न सौंप दी जाए—फिर वही कहानी दोहराई जाती है, नए स्टाइल में, नए डिज़ाइन के साथ!
महिला का बैंक: झाड़ू, पोंछा, बरतन और गुप्त ख़ज़ाना
16. घर-घर जाकर झाड़ू-पोंछा, बरतन और नौकरी करके अपने बच्चों को पढ़ाने का सपना देखने वाली महिला असल में कोई आम इंसान नहीं होती, बल्कि वित्तीय प्रबंधन की जादूगर होती है। सुबह पाँच बजे से रात तक हाड़तोड़ मेहनत करने के बावजूद वह हर आपदा से निपटने के लिए किसी अदृश्य बैंक से पैसे निकालने में सक्षम होती है।
17. ‘झाड़ू-पोंछा बैंक’ की मास्टरमाइंड
जब पति की कमाई पूरी नहीं पड़ती और घर का बजट उलट-पलट होने लगता है, तब यह महिला अपने विशेष ‘बैंक’ से गुप्त रूप से कुछ नोट निकालकर संकट टाल देती है। पति पूछे कि पैसा कहाँ से आया, तो जवाब मिलेगा, “अरे, बचा रखा था!” लेकिन यह “बचा हुआ” पैसा कहाँ से आया और कैसे बढ़ता रहा, यह रहस्य वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए।
18. ‘कपड़ों की गठरी’ नामक स्विस बैंक
घर में भले ही हर कोना छान लो, लेकिन असली ख़ज़ाना वहीं मिलेगा जहाँ किसी की नज़र न पड़े—पुरानी साड़ियों और सलवार-कुर्तों की गठरी के बीच। जब कोई ज़रूरत आन पड़े, तो वह गठरी खोलेगी और उसमें से जादुई रूप से सौ, दो सौ, पाँच सौ और कभी-कभी हजार-हजार के नोट निकालकर पूरे परिवार को चौंका देगी। यह गठरी दरअसल एक ऐसा स्विस बैंक है, जिसका संचालन सिर्फ़ वही जानती है।
19. पति की मार और धैर्य की पाठशाला
अब पैसा लाने की यह कुशलता तो है, लेकिन क्या मजाल कि कोई उसे सराहे! उल्टा, पति की मार भी इस बहादुरी का बोनस मिलती है। पति चाहे दिनभर ताश खेलकर या दुकान पर गप्पें मारकर समय बर्बाद करे, लेकिन महिला को घर के हर ख़र्च का हिसाब देना पड़ेगा। और जब हिसाब में एक भी रुपये की गड़बड़ी हुई, तो “तू मेरे पैसों पर ऐश कर रही है!” जैसे आरोप लगने में देर नहीं लगती।
20. ‘ज़रूरतें’ कभी ख़त्म नहीं होतीं
अब समस्या यह है कि यह बैंक हमेशा सिर्फ़ निकासी ‘मोड’ में चलता है, जमा ‘मोड’ में कभी नहीं। बच्चों की फ़ीस, ससुरजी की दवाई, देवर की पढ़ाई, त्योहारों के ख़र्चे, पड़ोस की चंदा पार्टी—हर जगह यही महिला बैंक काम आता है। चाहे यह बैंक दिवालिया होने के कगार पर हो, लेकिन इसकी सेवाएँ कभी बंद नहीं होतीं।
21. महिला का बैंक: दुनिया का सबसे रहस्यमयी वित्तीय संस्थान
आख़िर में, इस बैंक की ख़ास बात यही है कि यह बिना किसी सरकारी मदद, बिना किसी ब्याज और बिना किसी लाभ के निरंतर चलता रहता है। अगर सरकार इसे आधिकारिक रूप से मान्यता दे दे, तो शायद दुनिया की आर्थिक समस्या हल हो जाए! लेकिन महिला के लिए यह कोई नई बात नहीं—वह तो बस इसी उम्मीद में जी रही है कि शायद किसी दिन उसका संघर्ष भी किसी की नज़र में आ जाए . . . मगर तब तक, गठरी में नोट भरने का सिलसिला जारी रहेगा!
22. कर्त्तव्यों का बोझ: संघर्ष की कोई सेल्फ़ी नहीं
लेकिन इन सबके बावजूद, महिला वही होती है जो जन्म से लेकर अंतिम साँस तक संघर्ष करती है—घर, समाज और अपने ख़ुद के लिए। बेटी, बहन, पत्नी, माँ—हर रूप में वह अपनी ज़िम्मेदारियों का पहाड़ ढोती रहती है। अफ़सोस, इस संघर्ष की न तो कोई सेल्फ़ी होती है, न ही कोई फ़ेसबुक अपडेट। यह लड़ाई चुपचाप चलती रहती है, बिना किसी लाईक, कमेंट या शेयर के!
निष्कर्ष:
महिलाएँ हर रूप में जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं—कभी हँसती, कभी रोती, कभी डाँटती, कभी सँभालती। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर सिर्फ़ औपचारिकता निभाने के बजाय, उनके संघर्ष और योगदान को हर दिन सराहा जाना चाहिए!
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