अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

रफ़ा-दफ़ा

 

बच्चों में कभी-कभी झगड़ा हो जाता था। तो बड़े-बूढ़े कहते थे रफ़ा-दफ़ा करो। आजकल तो हर जगह रफ़ा-दफ़ा है। एफ़ आई आर कराने जाइए कुछ ले-देकर रफ़ा-दफ़ा, बिल्डिंग का मैटिरियल ख़राब है, आज बनी कल ढह जाए,  रफ़ा-दफ़ा करो साहब आपका घर है। बच्चे हैं ख़र्चे हैं। जैसे साहब को अपने घर बच्चों के बारे में पता ना हो। ईमानदार के लिए ट्रांसफ़र है, सस्पेंशन है, शूटआउट है, लूप लाइन है, रिश्वत का इल्ज़ाम है।

हम होंगे कामयाब एक दिन, विश्वास पूरा है—हम होंगे कामयाब एक दिन—आज के दौर में यह गीत ही बदल गया है। जो पूर्वजों की धरोहर के रूप में मिला था।

हर जगह प्रवेश के 2 दरवाज़े हैं मूल्यों के साथ। रास्ते पर चले तो घुटन, ग़रीबी, दहशत, बिना छप्पर के रेंगने वाले कीड़े, दूसरे दरवाज़े से प्रवेश किया समय की बचत शान-शौकत, रौनक़ गाड़ी, बँगला और नाम आपका। 

कहते हैं सरस्वती से माया आती है ।

बिना सरस्वती भी माया आती है उल्टे जीवन में स्थायित्व और ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा ही बदल जाता है।

पेट की क्षुधा के लिए ब्रेड चुराने वाला कारावास में! क़ानून की किताबें जिसमें न्याय करवटें बदलता रहता अलमारियों में सजी रहती है। गुनाह सबूत माँगता है।, आँखों पर पट्टी बँधी है तो पलड़ा किसी भी और झुक सकता है।

संसार को चलाने में एक और की भूमिका होती है, गाड़ी के दो पहियों का एक हिस्सा कहा जाता है—नारी। स्याह रातों में निर्बल काया की चीख चीत्कार बंद अँधेरे कमरों में दफ़न कर दी जाती है! चश्मदीद नेत्रहीन हो जाते हैं! क़ानून के रखवाले हाथ बहती गंगा में हाथ धो लेते हैं, रहा-सहा वकील साबित कर देता है! शारीरिक शोषण के साथ जद्दो-जेहद मानसिक शोषण भी हो जाता है, पागल खाने के क़ैदी इस बात के गवाह हैं। हैवानियत के आक़ा खुले घूमते हैं!

जिस तरह घनघोर बारिश के बाद तूफ़ान शांत हो जाता है इसी तरह गुमनामी में कुछ नाम चले जाते हैं। आरोप-प्रत्यारोप के बीच मरी हुई लाश से बदतर ज़िन्दगी कफ़न में दफ़न हो जाती है। केस ख़ारिज हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ हाल, घोटालों में, दस्तावेज़ों में आग बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों का धराशाई हो जाना, तो बाँध का बनना और बाँध ढह जाना ।

हम विकास के घोड़े पर सवार विकासशील से विकसित होते चले जा रहे हैं। पानी की एक बरसात कभी बाढ़ कभी सूखा हमारी विकासशील होने का सबूत देता रहता है। बाक़ी चीज़ें रफ़ा, हर समस्या का समाधान रफ़ा-दफ़ा! 

आदमी मामलों को रफ़ा-दफ़ा करता रहता है और सुकून से जीता रहता है।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

चिन्तन

कहानी

लघुकथा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं