ड्रम युग: आधुनिक समाज का नया फ़र्नीचर
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार1 Apr 2025 (अंक: 274, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
पहले ज़माने में दहेज़ में स्टील के बरतन, सिलाई मशीन और सोने की चूड़ियाँ दी जाती थीं। लेकिन अब समाज इतना प्रगतिशील हो गया है कि लोग दहेज़ में ‘ड्रम’ देने से घबराने लगे हैं। भाई, ज़रा सोचिए, ग़लती से अगर लड़की की माँ ने स्टील का ड्रम भेज दिया, तो दूल्हे के घरवाले दूल्हे को ही उसमें देख सकते हैं!
पुराने ज़माने में लोग दान पुण्य में पानी की टंकियाँ लगवाते थे, समाज सेवा करते थे, नाम लिखवाते थे, “श्री रामलाल एंड फ़ैमिली द्वारा दान की गई।” पर अब टंकी का ज़माना गया। अब तो ‘ड्रम’ चर्चा में है, और हाँ, इस पर नाम मत लिखवाइए वरना पुलिस सबसे पहले आपको ही ढूँढ़ेगी।
आजकल विवाह पूर्व जाँच-पड़ताल करना ज़रूरी हो गया है। लड़की के घर जाइए तो पहले अलमारी, किचन, और ख़ासकर टेरेस पर रखे ड्रम ज़रूर चेक करें। शादी के बाद घर में कोई नया ड्रम आता दिखे, तो तुरंत अपने दोस्तों को लोकेशन भेज दें—भाई, अगर कल से ऑनलाइन न दिखूँ तो ड्रम में ही ढूँढ़ना।”
आधुनिक तकनीक का लाभ उठाइए—घर के हर कोने में सीसीटीवी लगाइए, उसे मोबाइल से कनेक्ट करिए। अगर अचानक आपकी पत्नी रात में किचन में बड़ी छुरी लेकर घूमती दिखे, तो तुरंत ख़ुद को ‘किडनैप’ कर लीजिए और किसी दोस्त के घर भाग जाइए।
समाज में स्त्री को देवी माना गया है। वह स्नेह, ममता और करुणा की मूर्ति होती है। लेकिन ज़रा सोचिए, जब वही देवी ‘ड्रम वाली काली’ बन जाए, तो कौन बचा सकता है? जिस हाथ से कभी पति के लिए घी के पराठे बनते थे, वही हाथ . . . ख़ैर छोड़िए, कल्पना मत करिए, बस अलर्ट रहिए!
अब एक सलाह—अगर आपके घर में पहले से ड्रम रखा है, तो प्लीज़ उसे बेच दीजिए या किसी कबाड़ी को दे आइए। वरना पड़ोसियों की नज़रों में आप शक के दायरे में आ सकते हैं। और अगर आपको कोई ड्रम गिफ़्ट दे तो उसे मुस्कुराकर वापस कर दीजिए, “भाई, हमारी दोस्ती बनी रहे, बस ड्रम मत देना!”
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