गांधारी का मौन रहना
काव्य साहित्य | कविता डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार1 May 2024 (अंक: 252, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
गांधारी तुम, विदुषी थी
अनभिज्ञ नहीं ज्ञानी थी॥
स्त्री हो कर भी तुमने
स्त्री का अपमान कराया॥
भाई भाग भाई ने खाया
सफल कभी हो ना पाया॥
ग़लत राह पर चलने पर
ग़लत का साथ निभाया॥
भरी सभा में चीर हरण
कौरवों का नाश कराया॥
करनी अच्छी होती है तो
नाम भी जग में होता है॥
नारी का किया अपमान
तो वंश नाश ही होता है॥
सत्ता की लोलुपता ने
छल करके जीत ना पाया॥
करने षड्यंत्र और प्रपंच
चक्रधारी को बैरी बनाया॥
दुर्योधन और दुशासन का
नाम नहींं दोबारा पाया॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
चिन्तन
कहानी
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं