बस रह गई तन्हाई
काव्य साहित्य | कविता डॉ. प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार15 Aug 2023 (अंक: 235, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
मिट्टी के घर
चूने की पुताई
गाय का रम्हाना
गोबर से लिपाई
चूल्हे से उठता धुआँ
ख़ुश्बू रोटी की आई
नीम के नीचे खटिया
अम्मा की चटाई
वो ठंडी हवा वो पुरवाई
नदिया का पानी
वह मंदिर की घंटी
छाछ की गिलसिया
गुड़ की डीगरिया
वो छूट गया वहीं
बस रह गई तन्हाई
शहर की धूल में
मैं सब भूल गया
पेट की आग ने
रिश्तों से की बेवफ़ाई
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस और असली हक़ीक़त
- अपराध की एक्सप्रेस: टिकट टू अमेरिका!!
- अस्त्र-शस्त्र
- आओ ग़रीबों का मज़ाक़ उड़ायें
- आहार दमदार आज के
- एमबीबीएस बनाम डीआईएम
- कचरा संस्कृति: भारत का नया राष्ट्रीय खेल
- गर्म जेबों की व्यवस्था!
- चंदा
- झुकना
- टमाटर
- ताक़तवर कौन?
- पेट लवर पर होगी कार्यवाही
- मज़ा
- यमी यमी मिल्क राइस
- रीलों की दुनिया में रीता
- रफ़ा-दफ़ा
- विदेश का भूत
- विवाह आमंत्रण पिकनिक पॉइंट
- संस्कार एक्सप्रेस–गंतव्य अज्ञात
- क़लम थामी जब
नज़्म
कविता
चिन्तन
कहानी
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं