अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

अपराध की एक्सप्रेस: टिकट टू अमेरिका!!

 

सोचिए, एक आदमी भारत से अमेरिका गया। सपना था डॉलर कमाने का, नाम कमाने का। लेकिन वहाँ जाकर डंकी ट्रेंड पकड़ लिया—मतलब चोरी-चकारी, ठगी या कोई और अपराध। अब भाईसाहब ने सोचा होगा कि अमेरिका में पुलिस बस फ़िल्मों में ही दौड़ती है, असल ज़िन्दगी में तो कोई हाथ भी नहीं लगाएगा! 

पर जब हक़ीक़त सामने आई और पुलिस ने धर दबोचा, तब समझ आया कि यह हॉलीवुड की फ़िल्म नहीं, बल्कि असली ज़िन्दगी है। कोर्ट में पेशी हुई, जज ने कुछ साल जेल में डालने की सोची, मगर फिर अमेरिका सरकार ने सोचा—“अरे! यह तो बाहर का माल है, वापस भेज दो!”

अब बेचारे अपराधी महाशय को अमेरिका की जेल में पाँच-सात साल काटने का मौक़ा भी नहीं मिला। सीधे एयरपोर्ट पर चढ़ा दिया और कह दिया—“लो भैया, वापस अपने देश जाओ, वहाँ जो करना है करो!”

यह सजा है या सौग़ात? 

सोचिए, अगर यही काम कोई अमेरिकी भारत में करता, तो क्या उसे ऐसे ही प्यार से विदा किया जाता? नहीं! पहले पाँच साल केस चलेगा, फिर जेल, फिर कोर्ट के चक्कर। लेकिन यहाँ तो “नो टेंशन, ओनली डिपोर्टेशन!”

अब यह लोग भारत लौटकर फिर से वही करेंगे, क्योंकि उन्हें पता है कि “अमेरिका की जेल में फ़्री की रोटी नहीं मिलेगी, लेकिन वापसी की फ़्लाइट फ़्री में मिल सकती है!”

तो भाई, अगर अपराध करके भी आप बस वापस भेजे जा रहे हैं, तो इसे सज़ा मत समझिए, यह तो मुफ़्त की छुट्टी है! अगली बार जाने से पहले देख लीजिए—“कहीं यह ‘डंकी ट्रेंड’ आपको ‘टिकट टू अमेरिका’ की बजाय ‘टिकट टू इंडिया’ न बना दे!”

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

नज़्म

कविता

चिन्तन

कहानी

लघुकथा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं