दुल्हन दादी
कथा साहित्य | कहानी अशोक परुथी 'मतवाला'15 May 2023 (अंक: 229, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
“सुनीता जी, बहुत अच्छा किया आपने, मुझे अपना फ़ैसला सुनाकर। आख़िर, मुझसे बदला ले ही लिया आपने, मेरी मोहब्बत को ठुकराकर और कैनेडा में जाकर बसने का फ़ैसला लेकर। मैं नहीं जानता तीन दशक पहले हमारी मंगनी के बाद, जब मैंने अमेरिका आने का फ़ैसला किया था, तब तुम्हारे दिल पर क्या बीती थी। मैं नहीं जानता कि क्या तुम कभी रोई थीं, जैसे मैं तुम्हारे फ़ैसले को लेकर आज रो . . .”
आनंद ने सुनीता को अपने संदेश में फिर लिखा था, “सुनीता जी, आप भली-भाँति जानती हैं कि मेरा फ़ैसला मेरी एक मजबूरी थी! मैं उस समय भी शादी करने के अपने दायित्व से हरगिज़ नहीं भागा था। मैंने तो शादी को स्थगित करके कुछ और समय की मोहलत ही माँगी थी। फिर क्या हुआ, तुम अच्छी तरह से सब जानती और समझती हो।”
“हाँ, आनंद मैं जानती हूँ और मैंने अपनी शादी के बाद यह महसूस किया कि तुम एक सच्चे और ईमानदार इंसान हो। जानती हूँ कि उस वक़्त जो भी हुआ एक ग़लतफ़हमी का नतीजा था। मेरे मम्मी-पापा ने तुम्हारे अमेरिका जाने के निर्णय को शादी न करने का एक बहाना समझा, और उस उम्र में, तुम जानते हो, मैं तो मम्मी-पापा का विरोध करने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी। इसीलिए शादी के बाद सभी पारिवारिक ख़तरों के बावजूद भी मैं तुमसे जुड़ी रही,” सुनीता ने स्पष्ट किया।
सुनीता की बात वज़नी थी, और उसने अपने बात की सच्चाई को ही दोहराया था, “लेकिन अब हालातों ने फिर अपना रुख़ बदला है। आप जानते हैं, मेरी ज़िन्दगी में क्या भूचाल आया है। मेरे पति के अचानक निधन के बाद हमारा सब कुछ बिखर गया है। उधर भरे घर को ताला लगा पड़ा है और बच्चे इधर कैनेडा में स्थापित होने में लगे हैं। न चाहते हुए भी मैं यहाँ बेघर-सी पड़ी हूँ। बच्चे मेरा बहुत ख़्याल रखते हैं, लेकिन, कैनेडा में मेरा ही दिल नहीं लग रहा। बच्चे भारत में अब मुझे अकेले रहने नहीं देते, और विदेश के माहौल में मैं घुटी पड़ी हूँ। अभी तक तो मुझे यहाँ की ठंड और मौसम भी रास नहीं आया। न जाने इस समस्या का क्या हल है, मैं नहीं जानती?”
“जानता हूँ, मेरे मम्मी-पापा का भी यही हाल था। वे अमेरिका में आते बाद में थे, और वापस भारत जाने की बात पहले करते थे। तुमने, देश और विदेश में भेद की एक बहुत सुंदर तस्वीर खींची है। हाँ, एक बात और, शायद तुम सहमत होगी कि बच्चों के पास रहने, और अपने घर में अपनी स्वतंत्रता से रहने में भेद है, और इसका आनंद भी कुछ और है। लेकिन तुम्हारे सामने तुम्हारी ज़िन्दगी का एक लंबा सफ़र पड़ा है। जो गुज़र गया सो गुज़र गया, लेकिन पिछले कल को लेकर तुम अपना आज तो कूड़े में नहीं डाल सकतीं।”
“तुम ठीक कहते हो, आनंद लेकिन, अभी मैं फिर से शादी करने जैसा इतना बड़ा निर्णय नहीं ले सकती, मुझे थोड़ा समय दो, सोचकर बताऊँगी।” सुनीता ने बात स्पष्ट करते हुए फिर कहा, “सारी ज़िम्मेवारी मेरे सिर पर आ पड़ी है। मेहरा साहिब थे तो वे ही सब कुछ करते थे, उनकी अनुपस्थिति से बौखला ही गई हूँ, मुझे समझ नहीं आता कि मैं कहाँ से शुरू करूँ और कहाँ ख़त्म,” कहते-कहते सुनीता का गला भर आया और उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह निकली।
“मैं तुम्हारे दुख को समझता हूँ,” आनंद ने अपनी हमदर्दी जताई। ऐसे मौक़ों पर उसके पास शब्द कम पड़ जाते थे। इसके बाद दोनों काफ़ी समय तक बातें करते रहे।
आनंद से बातें कर के सुनीता का मन हल्का हो गया था। वर्षों तक वे दोनों भले एक–दूसरे से अलग रहे हों, मगर उनके दिल एक-दूसरे के बहुत क़रीब थे।
“मैं जानती हूँ, तुम मेरे, दिलो-दिमाग़ में हो आज भी और मुझसे बेइंतहा मोहब्बत करते हो, मैं भी तुम्हें चाहती हूँ, लेकिन, आनंद क्या किया जाये अगर तुम मेरी, और मैं तुम्हारी तक़दीर में न हों तो?”कहते हुए सुनीता उदास हो गई।
एक लंबी साँस लेकर सुनीता ने फिर कहना शुरू किया, “मुझे माफ़ कर देना, आनंद, तुम मेरी मजबूरी को भी समझो। मैंने तुमसे पहले भी कहा था, मुझे लेकर कोई आशियाना बनाने का ख़्वाब मत देखो। मैं नहीं चाहती कि तुम्हारा सपना सच न हो पाने की दशा में तुम्हारी भावनाओं को ठेस पहुँचे। इस उम्र में तो मैं शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती। मेरे बच्चे अब बड़े हो चुके हैं, वे सब क्या सोचेंगे? मेरे बच्चों का अपना सर्कल है, और तुम तो जानते ही हो कि इन हालातों में मैं उन के ऊपर ही निर्भर हूँ। मेरे अब पोते-पोतियाँ हैं। मेहरा साहिब का एक लंबा अतीत जुड़ा है मुझसे। प्लीज़ मेरी इस हालत को समझो, मैं जानती हूँ कि पश्चिमी सभ्यता अलग है, वहाँ पर ऐसा करना आम बात है, लेकिन मेरे जैसी औरत के लिए सब दुनियादारी को एक तरफ़ छोड़कर तुमसे शादी कर लेने का निर्णय आसान नहीं बल्कि असंभव भी है। देखो आनंद, तुम नाराज़ नहीं होना . . . मेरे फ़ैसले को लेकर! थोड़ा सोचो . . . प्लीज़।”
सोशल मीडिया के ज़रिए अपना फ़ैसला आनंद को सुनाकर सुनीता आनंद की प्रतिक्रिया जानने को उत्सुक थी। उस शाम आनंद के मन की दशा कैसी विकट थी या फिर उसकी रात कैसी बीती, यह तो वह या उसका दिल ही जानता था। मगर आनंद उसी रात सुनीता को कोई जवाब भेजकर उसकी नींद नहीं उड़ाना चाहता था। अपने मन की भावनाओं का गला घोंटते हुए और अपनी मोहब्बत से मजबूर होकर उसने लिखा, “अब रात बहुत हो गई है, तुम सो जाओ। बात कल सुबह करेंगे।”
दोनों में जो भी रिश्ता था, वह अपने आप में एक नमूना था। उनके बीच सैकड़ों मतभेदों के बावजूद भी प्यार की कसक थी। इधर आनंद तो सुनीता के दुख को बाँटने की सोच रहा था। वह ख़ुशियों के ख़्वाब जो उसने तीन दशकों से सुनीता के साथ अपनी मोहब्बत को लेकर सँजो रखे थे, उन्हें अब वह जीना चाहता था।
अगली सुबह सुनीता ने बिना आनंद का इंतज़ार किए ‘व्हाट्सएप’ पर अपना यह संदेश छोड़ दिया था, “अलविदा, अपना ख़्याल रखना।”
वह सुनीता के इस संदेश को पढ़कर और इस व्यवहार को देखकर एकदम भौचक्का रह गया था। वह बुरी तरह हताश और निराश था। उसे सुनीता से ऐसे व्यवहार की सपने में भी उम्मीद नहीं थी। सुनीता के ऐसे व्यवहार को समझना आनंद के लिये बहुत दुखदाई रहा।
अगले दो दिन आनंद का मन इसी अंतर्द्वंद्व में घिरा रहा। कई बार उसके मन में आता कि वह सुनीता से इस बेरुख़ी का कारण पूछे और कई बार वह सोचता कि ख़ामोश रहकर सुनीता के फ़ैसले का सम्मान करे . . . बिल्कुल ख़ामोश रहकर। एक औरत की अपनी भी तो मजबूरियाँ होती हैं, मगर वह कह तो सकती थी। क्या इतने सालों में इतना भी भरोसा नहीं कमाया था उसने?
आनंद ने अपने मन में ठान लिया था कि सुनीता इस बात को महसूस तो करे लेकिन, अब वह उससे कभी भी बात नहीं करने वाला।
बामुश्किल जैसे-तैसे कर एक सप्ताह ही बीता होगा कि बहुत प्रयासों के बाद भी वह अपने दिल के जज़्बातों पर क़ाबू न कर पाया। अपने संदेश में आनंद ने सुनीता को लिखा, “इस दौर में रिश्तों की कोई क़द्र नहीं रही। सगे संबंधी भी एक-दूसरे को ऑनलाइन देख कर, उनकी कुशलता का अनुमान लगा लेते हैं। आज किसी के पास फोन पर बात करने का भी समय कहाँ?”
आनंद ने सुनीता को अपने संदेश के ज़रिए अपना पता, फोन नंबर, ई-मेल मेल भेजकर लिखा, “अब तक एक उम्मीद को लेकर मैं स्वयं को जवान रखने को कोशिश करता आया हूँ, लेकिन अब मैं महसूस करने लगा हूँ कि ज़िन्दगी की दौड़ में अकेला पड़ गया हूँ, और यही बात मुझे बहुत जल्दी बूढ़ा बना देगी, और न जाने कब मेरी ज़िन्दगी की आख़िरी घड़ी हो।”
पिछले कुछ दिनों से आनंद के मस्तिष्क में निरंतर कुछ न कुछ उधेड़बुन चल रही थी। आज रात को वह बहुत देर से सोया था। रात के बारह तो बज ही गए थे। नींद में भी उसका दिमाग़ सुनीता के बारे में सोचकर घूम रहा था। कब आँख लगी उसकी, उसको कुछ पता ही नहीं चला।
‘टोरोंटो एयरपोर्ट’ से बाहर निकलकर उसने पहले से बुक की हुई ‘रेंटल कार’ उठाई, फिर बाज़ार में रुककर नाश्ता पैक करवाया। एयरपोर्ट से पंद्रह मील की दूरी पर वह ‘अपार्टमेंट’ था, जहाँ सुनीता ठहरी हुई थी।
सुनीता को घर से अपने साथ लेकर वह ‘नियाग्रा फ़ाल्स’ पहुँचा। कार पार्किंग में पहुँचकर आनंद ने कार पार्क कर दी। कार का इंजिन रुकने पर वह कार से बाहर निकली। उसके सामने ‘नियाग्रा फ़ाल्स’ का मोहक प्राकृतिक नज़ारा था, जिसे देख वह विमुग्ध हो गई और अनायास ही उसके मुँह से निकला . . . “वाओ!”
फिर सुनीता आनंद को देखने के लिए जब मुड़ी तो उसने उसको अपने क़दमों में आँखें बिछाए पाया। सहसा उसके कानों में आवाज़ सुनाई दी, “विल यू मैरी मी?”
“येस, येस, येस!” सुनीता ख़ुशी से उछल पड़ी। सजल आँखों में भरकर उसने आनंद को अपनी बाँहों में भर लिया।
यह क्या हो रहा था, सुनीता को कुछ समझ नहीं आया। उसके लिए यह एक ‘सरप्राइज़’ था। शायद उसका भी मन यही तो चाहता था, कब से।
अगले ही पल आनंद ने अपनी जेब से मंगनी की अँगूठी निकल कर उसकी अंगुली में पहना दी और आगे बढ़कर सुनीता के दायें गाल पर अपना एक चुम्बन दर्ज कर दिया। फिर सुनीता ने अपनी बारी ली और बोली, “आई लव यू।”
कुछ देर के लिए दोनों ने एक-दूसरे को अपनी बाँहों में समेंटे रखा। वर्षों की अधूरी साध आज पूरी हो गई थी।
“सुनीता चलो, तुम्हारे उल्टे हाथ की तरफ़ वाली बेंच पर बैठकर हम पहले ‘लंच’ कर लेते हैं, बाद में ‘नियाग्रा फ़ाल्स’ देखेंगे, और ‘बोटिंग’ भी करेंगे,” आनंद ने बैंच की ओर इशारा करते हुए कहा।
“आपने तो ‘नियाग्रा का झरना’ पहले भी कई बार देखा होगा . . . आप तो अमेरिका में कई सालों से रहते हैं?” सुनीता ने आनंद से पूछा।
“नहीं, मैं आज पहली बार ही इसे देख रहा हूँ, वह भी तुम्हारी बदौलत, क्योंकि, लोगों की परवाह न करते हुए तुमने हिम्मत की, और मिलने के लिए मुझे यहाँ बुलाया,” बैंच पर अख़बार बिछाते हुए आनंद ने कहा।
“क्या लाए हो? ओह, पूरियाँ और आलू की सब्ज़ी . . . ‘मेरी फेवरेट’ वाह!” सुनीता टिफ़िन के डिब्बों को खोलकर देखते हुए बोली।
“विक्टोरिया से लाए हो?” उसने फिर पूछा।
“नहीं मैंने आज सुबह तुम्हें घर से उठाने से पहले, टोरोंटो की मार्किट में रुककर इन्हें पैक करवाया था,” आनंद ने कहा और सुनीता के जवाबी ‘रिएक्शन’ को भाँपने लगा।
सुनीता ने दोनों के लिए प्लेट में पूरियाँ और आलू की सब्ज़ी डाली और पूरी का एक टुकड़ा सब्ज़ी से भरकर आनंद के मुँह में डालते हुए बोली, “तुम्हें याद हो कि या न याद हो पहली बार जब हम शिमला के झाखू मंदिर में मिले थे तब भी मैं घर से पूरियाँ और आलू की सब्ज़ी तुम्हारे लिए बना कर लाई थी।”
“मुझे याद नहीं, यह एक संयोग की बात है!”
“अच्छा यह बताओ, मिठाइयों में कौन-सी मिठाई तुमको बहुत पसंद है?”
“गुलाबजामुन,” फटाक से सुनीता के मुँह से निकला। ज़ाहिर था, वह इन्हें ख़ूब पसंद करती थी।
नियाग्रा की सैर करने के बाद सुनीता ने कहा, “तुमको शायद मालूम है, चार जुलाई वाले सप्ताह में ‘नियाग्रा फ़ाल्स’ को रात के समय देखने में बहुत मज़ा आता है। मैं तो पिछली जुलाई कैनेडा में नहीं थी, लेकिन कल हमारी पड़ोसन ने बताया कि रात के समय सतरंगी रोशनियाँ झरने को चार चाँद लगा देती हैं।”
“कोई बात नहीं, अगली बार हम दोनों चार जुलाई के आसपास का ‘ट्रिप’ बनायेंगे।”
“हाँ, मैं भी तुमसे यही कहने वाली थी,” सुनीता ने कहा।
“अच्छा, तुम पहले मुझे ‘के-1(K-1)’ वीसा यानी मंगेतर वीसा के बारे में विस्तार से बताओ।”
“प्रोसेस सीधा और सरल है, अमेरिका का कोई भी नागरिक विदेश में किसी विदेशी से शादी या उससे मंगनी करके उसे अपने साथ अमेरिका में बसा सकता है। दो शर्तें हैं, एक तो यह कि दोनों K-1 वीसा का प्रार्थना पत्र भरने से पहले एक-दूसरे से पिछले दो वर्ष के भीतर मिले हों, और यह सिद्ध करें कि उनका आपसी बंधन सच है। फिर प्रार्थना पत्र स्वीकार होने के बाद मंगेतर को अमेरिका में प्रवेश करने की अनुमति मिल जाती है। वहाँ पहुँचने के बाद एक शर्त यह कि दोनों 90 दिनों के भीतर शादी करें।”
बड़ी उत्सुकता से सुनीता बिना कुछ बोले सब सुन रही थी।
“बोलो, मेरे साथ शादी कर पाओगी?”
“अब यह अँगूठी पहन तो ली है, अब भी कुछ कहने को बाक़ी रहा है क्या? हा हा हा!” चिढ़ाते हुए सुनीता ने कहा।
“ . . . तक़दीर और लोगों की बातों का क्या होगा?” व्यंग्य कसते हुए आनंद ने पूछा।
“मेरी बात सुनो आप पहले, शायद यही ‘सही समय है और तक़दीर भी’। याद करो, में कहती थी न कि वक़्त से पहले पत्ता भी नहीं हिलता।”
“न . . . न, तुम मेरी बात सुनो पहले.” आनंद ने सुनीता की नक़ल करते हुए उसे चिढ़ाया था। वे दोनों इस बचकानी हरकत पर ज़ोर का ठहाका लगाकर हँसे थे। सुनीता ने अपना सिर सुकून के साथ आनंद के कंधे पर टिका दिया।
अपने प्रोग्राम के मुताबिक़ आनंद कैनेडा में दो दिन एक होटल में रहकर अमेरिका लौट आया था।
समय बीतते देर नहीं लगती। समय को जैसे पंख लग गए थे। इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म हो गईं थीं सुनीता को मंगेतर वीसा मिलने के पश्चात आनंद के पास आने की अमेरिका सरकार की अनुमति थी।
आज सुनीता की फ़्लाइट शाम के चार बजे ‘ह्यूस्टन एयरपोर्ट’ पर आ रही थी। फ़्लाइट समय पर थी। अपना समान लेकर ‘रिसीविंग एरिया’ में सुनीता जब पहुँची तो आनंद ने उसे अपनी बाँहों में भरकर हवा में उठा लिया। आनंद इस सुखद और सुनहरी मौक़े को सदा के लिए कैमरे में क़ैद कर लेना चाहता था। पहले से ही पूरी तैयारी थी उसकी। इस काम के लिए उसने वहाँ खड़े एक सज्जन से निवेदन करके अपना कैमरा उसके हाथों में सौंपा हुआ था।
इधर अपने गालों पर आनंद के लबों को महसूस कर सुनीता अपने इर्द-गिर्द मौजूद लोगों से हया खाए जा रही थी, और उधर उसके प्यार में पागल आनंद मौक़े का पूरा लुत्फ़ ले रहा था।
“मुझे छोड़ो . . . प्लीज़,” कहते हुए सुनीता ने अपनी साड़ी ठीक की और आनंद को देखते हुए बोली, “पहले घर तो ले चलो,” और फ़र्श पर अपने पैरों को जमाकर सम्हाला।
फिर आनंद सुनीता की आँखों में देखते हुए, किसी शराबी की तरह झूमता हुआ बोला, “ये अमेरिका है, मेरी जान।”
सामान वाली रेहड़ी को धकेलते हुए आनंद सुनीता को एयरपोर्ट के बाहर ले आया। फिर सुनीता से बोला, “तुम यहाँ रुको, मैं अपनी कार लेकर आता हूँ।”
थोड़ी देर बाद कार लेकर लौटा तो उसने सामान को कार की डिक्की में डाला। फिर सुनीता को मर्सिडीज़ की चाबियाँ थमाते हुए, पैसेंजर सीट पर बैठने लगा।
सुनीता ने आनंद को एक बाज़ू से पकड़कर कार में बैठने से रोका और कहने लगी, “अरे, नहीं, गाड़ी तुम चलाओ। मैं देख रही हूँ कि आज तुम कितने ख़ुश हो और जोश में भी हो। लेकिन, मुझे तो इस देश का अभी न दायाँ पता और न बायाँ। गाड़ी आप ही चलाएँगे, प्लीज।”
“गाड़ी में जीपीएस है और तुम्हारे साथ मैं भी तो हूँ। यहाँ ड्राइविंग का अपना ही मज़ा है,” आनंद ने सुनीता की ड्राइविंग में अपना भरोसा जताते हुए कहा।
“ओ के, लाओ, दो मुझे चाबियाँ,” सुनीता ने कार स्टार्ट की और कार निकालकर ‘हाइ वे’ की तरफ़ बढ़ने लगी।
“यहाँ से विक्टोरिया कितना दूर है?” सुनीता ने उत्सुकतावश पूछा।
“150 मील। हम आठ बजे के आसपास, सूर्य अस्त होने से पहले घर पहुँच जायेंगे।”
“आठ बजे तो अँधेरा नहीं हो जाता, क्या?”
“नहीं, आजकल गर्मियाँ हैं, न . . . सूर्य 8:45 के आसपास अस्त होता है। हम घर तो जल्दी पहुँच जाते, लेकिन पहले ह्यूस्टन में ‘राजा रेस्टोरेंट’ पर खाना खाकर चलेंगे,” आनंद ने कहा।
“ओ के,” कहकर सुनीता ने अपनी सहमति जताई।
रेस्टोरेंट पहुँचकर होटल मालिक से दुआ सलाम के बाद आनंद ने पूछा, “सब्ज़ियों में क्या है?”
“सिर्फ आलू पूरी ही बचे हैं। अब तो रेस्टोरेन्ट बंद करने का समय भी हो गया है।”
“माई फेवरेट . . . योर फेवोरिट . . .” सुनीता और आनंद ने एक साथ कहा। इस सहमति पर दोनों एक-दूसरे को मुस्कुराकर देखने लगे।
“ठीक है, दो खाने लगवा दो, और हाँ, चार गुलाब जामुन भी भिजवा देना।”
“माई फेवरेट,” कहते हुए सुनीता उछल पड़ी।
“आपको कैसे पता कि गुलाब जामुन मुझे बहुत पसंद हैं?”
आनंद ने सुनीता को कंधे से पकड़कर अपने समीप किया और उसे चूमते हुए बोला, “तुमने ही तो बताया था।”
“डिड आई? कब? मुझे बिल्कुल भी याद नहीं।”
“तुम तो प्यार में हो, अपने कपड़ों में भी ख़ुशी से फूलकर नहीं समा रहीं!” आनंद ने व्यंग्य कसा और फिर से कहा, “लगता है तुमने तो अपनी बुद्धि भी बिसरा दी है। याद करो, जब हम मिले थे ‘नियाग्रा फ़ाल्स’ पर, तब तुमने ही तो बताया था।”
“ओह . . . रियली, मुझे याद नहीं। सुनो, ये बताओ मैं मोटी हो गई हूँ क्या?”
“ग़म न करो, मेरी जान। अमेरिका में गोरे लोग कहते हैं, ‘ब्यूटी कम्स इन आल शेप्स एंड साइज़िज’। दो-चार किलो ऊपर हो भी गए हों तो क्या फ़र्क़ पड़ता है,” आनंद ने फिर व्यंग्य कसा।
मुँह बनाते हुए, सुनीता ने आनंद की कमर पर चुटकी भर ली।
“सॉरी . . . सॉरी!” आनंद ने माफ़ी माँगी और बोला, “मैं तो बस मज़ाक़ कर रहा था।”
खाना खाने के बाद दोनों फिर कार में सवार हो गए। अपनी कलाई पर बँधी घड़ी में समय को देखते हुए, आनंद ने सुनीता से कहा, “साढ़े छह हुए हैं, यहाँ से घर का सफ़र ठीक डेढ़ घंटे का है . . . पाँच मिनट पर ‘हाईवे 59 साउथ’ ले लेना, सीधा विक्टोरिया में घर को ले जाता है।”
“ठीक है, मुश्किल आई तो आपसे मार्ग पूछ लूँगी, वैसे मार्ग सीधा ही लगता है।”
“हाँ, तुमने बिलकुल ठीक कहा।” आनंद ने सहमति प्रकट करते हुए फिर से कहा,“लेकिन, जब तक मंज़िल पर न पहुँच जाओ तब तक दिल्ली दूर है।”
“ घर अब कितनी दूर रह गया है?” कुछ मील गाड़ी और चलाने के बाद सुनीता ने फिर पुछा!
“थक गई हो क्या? मैं गाड़ी चलाऊँ, क्या?”
“नहीं, नहीं, मैंने तो बस ऐसे ही पूछा। मुझे तो इस गाड़ी को चलाने में बहुत मज़ा आ रहा है। इसकी सवारी बहुत आरामदेह और मज़ेदार है, मुझे कई गाड़ियाँ चलाने का मौक़ा मिला है, लेकिन इस गाड़ी के सवारी की बात ही अलग है।”
“हाँ, पर गाड़ी चलाते हुए सो मत जाना। कहो तो मैं गाड़ी चलाता हूँ, बस दस मिनट में हम घर होंगे।”
“ओ के, कार चलाते नहीं सोऊँगी,” आनंद को सुनीता ने यक़ीन दिलाया।
इस बीच आनंद की आँख लग गयी थी। कुछ क्षणों बाद सुनीता ने आनंद से फिर पूछा, “सुनो, कार के ‘डैशबोर्ड’ में यह क्या संदेश आने लगा है, ‘टेक ऐ काफ़ी ब्रेक’।”
“लगता है तुम्हें झपकी लगी, यही कार बता रही है, कार में लगे ‘सेंसर्स’ ने कोई अचानक झटका महसूस किया होगा,” आनंद ने स्पष्ट किया।
“उ हूँ . . . नहीं।”
“गाड़ी रोको, गाड़ी रोको सुनीता। आगे देखो लालबत्ती है!” आनंद लगभग चिल्ला उठा। और फिर एक बड़ा धमाका हुआ और आगे से आते हुए भारी भरकम ट्रक ने कार को अपनी चपेट में ले लिया।
पसीने से तर-बतर आनंद घबराकर बिस्तर पर उठकर बैठ गया। वह सुनीता को इधर-उधर देखने लगा। मगर जब आसपास की चीज़ों को देखा तब उसे अहसास हुआ कि वह अपने घर में है। सहसा उसने अपने हाथों को ऊपर उठाया और बुदबुदाया, “अच्छा हुआ यह एक सपना था।”
लेकिन न जाने अगले ही पल उसे क्या हुआ कि उसने समय का भी ख़्याल न करते हुए सुनीता को फोन ही लगा डाला।
“हेलो! क्या हुआ आनंद? मैंने मना तो कर दिया था तुम्हें,” सुनीता बोली।
“कौन है दादी?” पास में लेटी पोती ने पूछा जो बीस साल की हो चुकी थी।
“अभी बहुत भयानक एक्सीडेंट हुआ। तुम गाड़ी चला रहीं थीं और मैं तुम्हारे साथ था। तुम ठीक तो हो न? वैसे ये एक सपना था, पर मैं सपने में भी तुम्हारे लिए बुरा नहीं सोच सकता। आई एम सॉरी . . . तुम्हें इस समय डिस्टर्ब किया।” और सुनीता की आवाज़ सुनकर आनंद के दिल को तसल्ली मिली। फिर उसने फोन काट दिया।
“कौन है दादी, जो सपने में भी तुम्हारी इतनी ‘केयर’ करता है? कोई बहुत अपना ही हो सकता है, कोई पुराना दोस्त . . . वरना तो आजकल कौन किसी की परवाह करता है। काश . . . कोई मुझे भी ऐसा ही मिले। दादी कुछ बताओ न . . . कौन है?” पोती ने दादी को चूमते हुए कहा।
“बस, इतना ही समझ लो कि सब कुछ सही रहा होता तो आज तुम्हारे दादा होते, आनंद। उन्हें अपना कैरियर बनाना था, और मेरे मम्मी-पापा मुझे जल्दी से ब्याह कर अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर लेना चाहते थे। हमारी शादी नहीं हो सकी। हम दोस्त बनकर नदी के दो किनारों की तरह रह गए . . . और अब इस उम्र में शादी का क्या मतलब? लोग, तुम सब और दुनिया क्या कहेगी?” दादी ने उसके बालों में अपनी उँगलियाँ फिराते हुए कहा।
“दुनिया ने क्या तुम्हारे लिए सपना देखा है? तुम्हें फोन किया है? कल को मैं भी शादी करूँगी, मम्मी को वक़्त नहीं होगा, पापा ख़ुद में बिज़ी होंगे। तुम फिर अकेली हो जाओगी। एक ज़िन्दगी . . . एक ही बार जीना होता है . . . बार-बार नहीं। वैसे दादी वो स्मार्ट है? कुछ पैसे भी हैं या सिर्फ़ मजनूँ है?” पोती ने सुनीता के गालों को सहलाते हुए पूछा।
“हट पागल। स्मार्ट है, पैसे गाड़ी, मकान सब कुछ है . . . उसने मेरा इंतज़ार किया है ज़िंदगी भर,” सुनीता के शब्द उसके दिल की गहराइयों से निकल रहे थे।
“ओह . . . ऐसा तो कहानियों में होता है, पर ज़िन्दगी कहानी नहीं है। ज़िन्दगी से कहानी बनती है। कल तो हम सब पिकनिक पर जा ही रहे हैं, उसे भी बुला लो . . . हा हा हा,” पोती ने हँसते हुए कहा।
अगले रोज़ जब वे सब पिकनिक पर गए तब रात की घटना उसने सब को बता दी। पहले तो सब को आश्चर्य हुआ ये सब जानकार और जल्दी ही बेटी की बात सुनकर वे तीनों कुछ बातें करते रहे। और हँसते हुए सुनीता से पूछा, “माँ! क्या ये बात सही है कि उन्होंने शादी नहीं की अब तक, और आपका इंतज़ार कर रहे हैं?”
“हाँ, सब क़िस्मत की बात है और ये सच है,” सुनीता ने ज़मीन की तरफ़ देखते हुए कहा।
“अब तो आप सारी ज़िम्मेदारियाँ निभा चुकी हैं, पापा भी नहीं रहे। और हम वापस भी नहीं जाने वाले यहाँ से,” बेटा बोला।
“तुम कहना क्या चाहते हो?” सुनीता बोली।
“यही कि हम आपकी शादी में शामिल ही नहीं थे, क्यों न हम सब आपकी शादी में शामिल हों . . . और इस इंतज़ार को ख़त्म कर दें। हमसे क़रीब अब कौन है तुम्हारा? हमें एतराज़ नहीं, ख़ुशी होगी कि तुम्हारी पोती की शादी में सचमुच इसके दादा मौजूद होंगे। तुमने हमारे रिश्ते कराये, घर बसाया . . . क्या हम ऐसा नहीं कर सकते? इंसान चाहे तो हर सपना सच हो सकता है . . . और ये सपना आँखों से देखा नहीं है . . . आत्मा का सपना है . . . हाँ कह दो न, माँ,” बेटा बहू सुनीता के पास आते हुए बोले। पोती ने गले में बाँहें डालते हुए कहा, “क्या मैं जूते चुरा सकती हूँ शादी में।”
सब खिलखिलाकर हँस पड़े।
कुछ देर बाद आनंद को फोन कर बताया गया और हिदायत दी गई . . . डू नॉट क्रॉस स्पीड लेवल्स एंड रेड लाइट्स . . . बहुत प्यारा एक्सीडेंट होने वाला है।
“अब तो आलू पूरी खा लो दुलहन दादी!” पोती ने गाल चूमते हुए निवाला दादी के मुँह की तरफ़ बढ़ा दिया।
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