निराला तांगे वाला!
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता अशोक परुथी 'मतवाला'19 Feb 2015
चौराहे पर तांगे वाले से,
मेरा था यह सीधा-सा प्रश्न -
"भई, लाल क़िले के कितने पैसे लोगे?"
जानकर उसके विचारों को मैं हुआ बहुत प्रसन्न!
जवाब में तांगे वाला बोला -
“साहिब, मुझे माफ़ करना,
चाहे मेरी जेब आज भी खाली है,
और पास मेरे नहीं एक भी रत्ती!
लेकिन,
यह तो एक जुर्म होगा,
एक बड़ा कुकर्म होगा,
सरकार इसे बेचे तो बेचे,
मुझे नहीं कोई आपत्ति!
लेकिन,
नहीं बेच सकता मैं लाल किला!
क्यूँकि, यह है राष्ट्रीय सम्पत्ति!
क्यूँकि, यह तो है राष्ट्रीय सम्पत्ति!”
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