अली बाबा और चालीस चोर
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी अशोक परुथी 'मतवाला'14 Aug 2014
(स्वतन्त्रता दिवस विशेष)
प्रधानमंत्री श्री मोदी ने स्वतन्त्रता दिवस पर अपने पहले राष्ट्र-संदेश में, चलो एक बात तो खुलेआम कबूल की है कि वे जनता के सेवक नहीं बल्कि जन-सेवकों के चौधरी हैं यानी 'प्रधान सेवक' - 'मी लॉर्ड, पॉइंट मे बी नोटेड डाउन!"
अब यह जन-सेवक कौन है जिनका मोदी जी अपने-आप को सरदार, चौधरी या प्रधान बता रहे हैं? वही न जो पिछली सरकारों में भी शामिल थे और लोग जिन्हें चोर-उचक्के समझती थी! मोदी जी की सरकार में उनके आने के बाद क्या उनका चरित्र बदल गया है? क्या उन्होंने गंगा-स्नान कर लिया है जो उनके सब पाप धुल गए हैं? साँप को दूध पिलाने से क्या साँप डसना छोड़ देता है?
यह साली जनता ही बेवाकूफ है, जो चौबीसों घंटे पहले गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, हिंसा, रिश्वत, आदि के रोने रोती है और फिर एक ही जलसे के बाद नेता की बातों में आकर तालियाँ पीटने लगती है!
प्रधान मंत्री मोदी जी ने अपने भाषण में भारत के घरेलू स्तर पर विकास और विश्व स्तर पर प्रतिष्ठा कायम करने के लिये स्वामी विवेकानंद जी के योगदान को सराहा। इसके अलावा उन्होंने अरविंद जी को भी सराहा, उनको एक योगी और महाऋषी बताया और स्वीकारा कि वे ऐसे मुनियों और संतों का आदर करते हैं। मोदी जी ने कहा कि उनके मन में अरविंद जी के लिये बहुत श्रद्धा है क्योंकि अरविंद जी ने कहा था, "भारत की दैवी शक्ति विश्व-कल्याण में एक अहम भूमिका निभायेगी.!
अरविंद जी का नाम मोदी जी के भाषण में सुनकर मेरा मन गदगद हो गया। मुझे बिलकुल भी अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। अपनी बगल में खड़े एक भद्र पुरुष से मैंने पूछा, "क्या अभी-अभी मोदी जी ने अरविंद केजरीवाल का नाम लिया?...क्या उनके काम को सराहा? क्या उनका लोहा माना? अनायास ही मेरे मुख से निकल पड़ा - "नेता हों तो मोदी जी जैसे ...भारत माता की जय...!"
जवाब में मेरे पड़ोसी व्यक्ति ने पहले अपना सिर सहमति में नीचे किया जैसे हाँ कर रहा हो फिर उसके बाद उसने अपने सिर को दायें से बायें और बायें से दायें कई बार हिलाया और कहना शुरू किया – "मोदी जी ने महर्षि अरविंद का नाम लिया है न कि अरविंद केजरीवाल का!"
मोदी जी ने अपने भाषण में सभी 'भाईयो-बहिनो' से "स्वच्छ भारत" बनाने का संकल्प किया। आप मुझसे चाहे शर्त लगा लें लेकिन मैं गल्त नहीं हो सकता । अगर मैं गलत साबित हो जाऊँ तो मैं आपको दस मूँगफलियाँ दूँगा और अगर आप शर्त हार जाएँ तो आप मुझे 100 डालर देना। लाल किले के मंच से मोदी जी चाहे अपने मुँह से हमारे इर्द-गिर्द फैली गंदगी को साफ करने की बात कर रहे थे लेकिन उनके मन में 'आप' (ए.ए.पी.) पार्टी और इसके मुख्य नेता केजरीवाल, श्री कुमार विश्वास (कोई दीवाना कहता है वाले) आदि लोगों की याद आ रही थी। अब रही बात साफ़ सफाई की - तो सफाई एएपी से ही शुरू की जायेगी - "ई" से 'इकनोमिकल, "ई' से 'ईज़ी' और "ई" से 'एंवायर्मेंटली सेफ़' भी रहेगी, क्योंकि आम आदमी पार्टी के सदस्यों के पास अपने झाड़ू भी हैं और इन्होंने मोटरसाइकल भी रखे हुये हैं जिनको लेकर यह गली-मुहल्लों में घूम रहे हैं, और आम जनता का दिमाग खराब किया हुआ है!
लोगों को करप्शन (रिश्वत-घोटाले), हिंसा आदि मसलों की याद है या नहीं लेकिन 'आप' ने इतना शोर मचा रखा है कि जनता हरदम इसी सोच में डूबी रहती है जिसके परिणामस्वरूप हम प्रगति की राह पर न तो चल सकते हैं और न ही चलने की सोच सकते हैं। यह विकास के मार्ग पर चलने की दिशा और राह में सरकार के लिए बाधक हैं। अगली गांधी जयंती तक इस समस्या का हल करना है, मोदी सरकार ने! इन 'आप' वालों की बोलती बंद करनी है या फिर इनको किसी न किसी तरीके से सलाखों के पीछे बंद करना है। ऐसा करने के बाद ही भारत के लोग विकास के पथ पर अग्रसर होने की सौच सकते हैं।
"गांधी जी को भी सफाई बहुत पसंद थी। आज गांधी जी अगर हमारे इर्द-गिर्द यह फैली गंदगी देखेंगे तो हम पर छी-छी करेंगे। उन्हें हम इसका क्या कारण देंगे?" मोदी जी ने जनता से पूछा।
मोदी जी ने "मेक इन इंडिया' के महत्व पर भी ज़ोर दिया। देशवासियों, अगर यह भी हम नहीं कर सकते तो 'मेड इन इंडिया' की मोहर तो लगा ही सकते हैं । "भाईयो और बहनों, हमारे देश में 'सवा करोड़' लोग हैं, अगर हरेक व्यक्ति एक एक नयी चीज़ भी बनाये या उस पर भारत की मोहर लगाये तो हम आयात की गयी चीज़ों को निर्यात कर के दूसरे देशों में अपनी चीजों के प्रति विश्वास पैदा कर सकते हैं कि भारत में बनी चीज़ें उम्दा हैं और टिकाऊ भी हैं।
सवा करोड़ लोगों की वज़ह से या नेताओं द्वारा गैर कानूनी ढंग से भारत की ज़मीन हथिया लिए जाने के कारण अगर फैक्ट्रियाँ लगाने की कहीं कोई ज़गह नहीं रही तो यह फैक्ट्रियाँ अपने सिर में लगाओ, उनमे खयाली-पुलाव पकाओ और कुछ नहीं कर सकते तो मिट्टी के ठूठे भट्टी में पकाओ (बनाओ), यह भी नहीं कर सकते तो उन्हें बार-बार इस्तेमाल करने वाला ठूठा बनाओ। रेल में 'डेली-पसेंजरी' करने वाले अगर इन ठूठों का इस्तेमाल करेंगे तो ज़रा सोचो इससे कितनी चिकनी मिट्टी बचेगी और प्रदूषण भी कम फैलेगा। मोदी जी ने इसके बाद कहा - सफाई करने के बाद इकट्ठे बैठकर कभी फुर्सत में चाय पीयेंगे। मुझे कितना अपनत्व लगता है, कितना अच्छा लगता है जब आप चाय की बात करतें हैं!
मोदी जी ने 'सवा करोड़' देशवासियों को कदम से कदम मिलाकर - 'सिर्फ एक कदम' -उठाकर आगे रखने को कहा है इससे भारत में हम सवा करोड़ फुट आगे हो जायेंगे। लेकिन, मोदी जी यह भूल गए कि इन सवा करोड़ में दो-दो टाँगें और पैर 'आम आदमी पार्टी' के भी हैं जो इधर-उधर हरेक गली- मुहल्ले और हर गाँव-शहर की और बढ़ रहे हैं! यह भी सुनने में आया है कि कुमार विश्वास भी मोदी सरकार की नज़र में आये हुए हैं। क्योंकि उनकी छवि चुनाव हारने के बाद बढ़ रही है लेकिन घटी नहीं है। मोदी जी के चमचों को यह बात बिलकुल भी नहीं भा रही कि अपनी हार का एक दिन भी मातम मनाये बगैर कुमार विश्वास विदेश की सैर पर निकल गए हैं। लोग तो काम करके पैसा या रुपया कमाते हैं मगर यह जनाब चुटकले और अपनी कवितायें सनाकर 'डालर' कमा रहें हैं।
खैर, कुमार जी को वापिस उतरना तो देहली में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर ही है ना? वहाँ उनको इस विदेशी धन पर 90 प्रतिशत आयकर देना होगा। ऐसा कोई कानून नहीं है पर बनाया तो जा सकता है कि नहीं? कुमार विश्वास, केजरीवाल और उनके साथी भी तो भारत माँ के बेटे हैं, हैं ना? यह किसी के तो बेटे हैं न? इनको देश में ऊधम मचाने के लिए तो ज़िम्मेवार ठहराया जा सकता है! अगर हम अपनी बेटियों पर नज़र रखते हैं तो भारत माँ को इस बात का भी पूरा हक है कि वे इन ऊधमियों पर पूरी नज़र रखे और इनकी करतूतों के लिए जवाब तलबी करे और जवाब-देही बनाये!
इन बकरों की माँ कब तक खैर मनाएगी, भला?
यह क्या भई, अब हमारे देश में योजना कमीशन नहीं होगा! योजना कमीशन के बिना भी किसी देश ने भला विकास किया है? योजनायें तो विकास का आधार होती हैं, पहले हमेशा योजना बनती है उसके बाद ही जाकर कोई प्रोजेक्ट शुरू होता है, राजनेताओं के खाने-पीने का सिलसिला शुरू होता है! मेरे मुख़बिर का कहना है कि मोदी जी की यह घोषणा उनके विधायकों को पसंद नहीं आई और इस बात को लेकर उनमें काफी रोष है तथा वे इस मुद्दे पर मोदी जी का समर्थन नहीं करेंगे! मोदी जी ने अपने समर्थकों को खुश करने के लिए एक और घोषणा की है - अभी तक तो सांसद अपने और अपने सगों के लिए महल-नुमा भवन बनाते थे लेकिन अब वे अपने लिए एक पूरा का पूरा 'आदर्श गाँव' बना सकते हैं! इसको कहते हैं, सियासत करना, वाह मोदी जी वाह!
मोदी जी के समर्थकों ने इस बात का भी बहुत शोर मचाया हुआ है कि मोदी जी ने बुलेट प्रूफ केबिन का इस्तेमाल किए बिना जनता को संभोधित किया - क्या यह उनकी लोकप्रियता का एक प्रमाण है?
सच है, मोदी जी ने बुलेट प्रूफ कैबिन का इस्तेमाल नहीं किया, लेकिन उनकी सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गये। लगभग 5000 से अधिक पुलिसकर्मी, 2000 से अधिक सेना के नौजवान, जगह जगह सी.सी.टी.वी. कैमरे, लाल किले के आस-पास के मुख्य मार्ग बंद आदि जैसे कई अन्य प्रबंध किए गये। यदि एक बार आप फिल्म को घुमा कर देखें तो आपको जगह-जगह पर काले कोटों में, धूप का चश्मा लगाये, हाथ में ब्रीफकेस लिये नौजवान दिखाई देंगे। मंच पर ही मोदी जी के 3 गज के घेरे में पाँच जासूसी कर्मी मौजूद थे। इसके इलावा सफैद वर्दी में दर्जनों और भी उनकी हिफाज़त के लिये वहाँ पर मौजूद थे। क्या आप समझते हैं कि यह वर्दीधारी वहाँ टाफ़ियाँ बेच रहे थे या गुबारे? लेकिन, यह कहने से मेरा यह अभिप्राय नहीं की मोदी जी की सुरक्षा के लिये यह प्रबंध नहीं होने चाहिये थे। प्रधानमंत्री जी की हिफाज़त करना देश का फर्ज़ है और शान भी! एक बार मैंने और नोटिस की कि मोदी जी का भाषण लंबा होने के कारण लोग 'बोर' होते दिखाई दिये, वह उबासियाँ लेते दिखे। अगर आप कभी श्रीमती इन्दिरा गांधी या दूसरे भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों के भाषणों की टेप देखें तो आपको रोमांचित होकर बार-बार तालियाँ पीटने की गूँज सुनाई देगी जो मोदी जी के इस समारोह से लगभग गायब थी! मोदी जी के भाषण अक्सर दो कारणों से लंबे हो जाते हैं – एक तो वे समझते हैं कि जनता भुलक्कड़ है, वह भूल जाती है कि क्या हो रहा है इसलिए उन्हें बार-बार बताना पड़ता है या फिर मोदी जी खुद भुलक्कड़ हैं कि वे अपनी बातों को पहले भी अपने चुनाव अभियान के दौरान सैंकड़ों बार दोहरा चुके हैं!
मेरे एक अन्य मुख़बिर के अनुसार श्री केजरीवाल द्वारा अपने जन्मदिन को 15 अगस्त वाले दिन मनाये जाने को भी एक षड्यंत्र बताया जा रहा है। यह जन्मदिन किसी और दिन नहीं मनाया जा सकता था, क्या? उन्होंने पिछले साल तो इस तरह अपना जन्मदिन नहीं मनाया था फिर इस बार क्यूँ? केजरीवाल जी के जन्मदिन पर "सोशल मीडिया" का बाज़ार काफी गरम था। उनके जन्म-दिन पर उनके समर्थकों ने जो गतिविधियाँ कीं उससे भी कई लोगों का ध्यान मोदी जी के भाषण से हटा। अमेरिका में लोग अपने बच्चों का जन्मदिन अपनी सुविधानुसार किसी और दिन मनाते हैं कि नहीं? अगर केजरीवाल साहिब अपना जन्मदिन किसी और दिन मना लेते तो क्या मुसीबत आ जानी थी? हारे हुये 'आप' के नेता का जन्मदिन क्या प्रधानमंत्री के राष्ट्र-संदेश से ज़्यादा महत्वपूर्ण था, क्या? इस गुस्ताखी के लिए उन्हें कभी भी माफ नहीं किया जाएगा!
एक उड़ती-उड़ती आई खबर के मुताबिक अब से पहली से आठवीं कक्षा तक के छात्र अब से पास-फेल हुआ करेंगे! वाह, मोदी जी वाह, किनकी बातों में आ गए है और हम गरीबों को साज़िश का शिकार बना रहे हैं। प्रधानमंत्री जी हमारी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों को पास-फेल करना नहीं होना चाहिए बल्कि इतना ही काफी है की वे कुछ अच्छा और कुछ नया सीखें!
"बेड़ा गर्क हो नसीब का, क्यूँ हर बार फेल हो जाता है बच्चा गरीब का" अब हम यह पंक्तियाँ भूल गए हैं, मोदी जी! क्या आप नहीं चाहते कि हम गरीबों के बच्चे पढ़-लिख कर प्रधानमंत्री बने न कि फेल होकर चाय वाले की दुकान पर लग जाएँ या खुद का चाय का खोखा खोल लें! अगर ऐसा कोई ‘फाइनल’ हुआ है तो उस पर पुनर्विचार होना चाहिए।
अपने देश में मैंने आज तक जो भी होते हुये अपनी आँखों से देखा है उसके आधार पर मुझे यह कहने में ज़रा-सा भी संकोच नहीं हो रहा कि
जनता टूटती रही, राजनेता लूटते रहे
द्रोपदी लुटती रही नये कौरव पैदा होते रहे!
जनता पानी, राशन, तेल को तरसती रही,
हर पल शोषण की चक्की में पिसती रही।
नेता अपने कोठे भरते रहे,
अंधे अपनों को रेवड़ियाँ बाँटते रहे!
अली बाबा और चालीस चोर हर दम खज़ाने लूटते रहे,
कोई करिश्मा होने की उम्मीद में, लोग जीते रहे, मरते रहे!
भारत माँ की जय!
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