राम नाम सत्य है।
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी अशोक परुथी 'मतवाला'15 Mar 2016
आजकल "सोशल मीडिया" पर ऐसे "वेब साईट्स" की भरमार है जो बताते हैं आपकी मौत कब होगी। प्रधानमंत्री आपके बारे में क्या सोचते हैं? आपकी गर्ल फ्रेंड आपकी बीवी बनेगी या नहीं आदि आदि। ऐसी ही एक साईट से प्रभावित होकर लेखक का यह हास्य लेख आपकी नज़र - संपादक
मेरी मौत 9 जून 2051 को होगी? यह तारीख़ एक "वेब-साइट" वालों ने मेरे लिये निकाली है। हे भगवान! तेरे घर में भी आज इन "आईडेंटिटी थेफ़्ट" वालों ने कुछ सुरक्षित नहीं छोड़ा। साँठ-गाँठ करके अब यह लोग हमारी मौत का रिकॉर्ड भी तुम्हारे यहाँ से ले आये हैं। एक रहस्य था और उसमें भी कितना रोमांच था कि एक दिन मेरी डार्लिंग, मेरे सपनों की रानी, मेरी मौत, मेरे पास आएगी और मुझे सजनी की तरह आकर अपने आग़ोश में भर लेगी और मैं आनंदित होकर सदा के लिए अपनी आँखें मूँद लूँगा। अब कर लो बात... यह रहस्य और रोमांस भी गया!
सन दो हज़ार इक्यावन के जून महीने के नौंवें दिन 24 घंटे के अंदर किसी भी वक़्त मुझे मौत आ सकती है। अगर यह कमबख़्त मेरे मरने का समय भी बता देते तो मैं उस दिन थोड़ा और सुकून से मर जाता..। नहा-धोकर धूप-बत्ती कर लेता… अपनी दाढ़ी-शेव बनाकर समय पर तैयार हो जाता। मेरे घर वाले भी चैन से अपना नाश्ता-लंच कर लेते या फिर अपना खाना-पीना उस घड़ी से कुछ आगे-पीछे कर लेते जब यमदूत अपना वाहन मुझे ढोने के लिए लाने वाले थे। अपने घर वालों से सफ़र में भूख लगने पर खाने के लिए कुछ "टिफन" में "पैक" करने का आग्रह कर लेता... न जाने कितना लंबा सफ़र हो... और न जाने कब जाकर किस पहर मुँह के रास्ते पेट में कोई निवाला जाये? कौन जानता है कि ऊपर वाले के उधर भी कोर्ट-कचहरी जैसा ही होता हो और घर से अपनी रोटी बाँध कर ले जानी होती हो? या फिर क्या उधर भी कचहरी की तरह अहाते में पीपल के पेड़ के नीचे कोई कुल्चे-छोले वाला मिल जाता है?
भई, इन "वेब-साइट" वालों पर अब मेरा पूरा विश्वास हो चला है, उन्होंने मेरी मौत का कारण हृदय-रोग बताया है। पता नहीं इनको मेरे इतिहास और "सेहत-रेकॉर्ड" के बारे मैं कैसे पता चला है... मुझे यह जानकार ताज्जुब हो रहा है। ... हाँ, मुझे अपनी इकलौती जवानी में ही शिमला की एक मृग-नयनी, कमसिन और बाली-उमरिया की एक छोकरिया से... हो गया था। ख़ुदा की मर्ज़ी थी या संजोगों की बात... हमारी नहीं हुई... और हो सकता है वह आज भी कहीं गोलगप्पों और चाट का मज़ा ले रही हो और हम समझदार आज भी उसके लिए अपना खाना छोड़े बैठे हैं।
ख़ैर, जो भी जानकारी उपलब्ध है उसके मुताबिक़ तब मेरी उम्र 93 वर्ष से कुछ दिन कम होगी। पता नहीं इतने साल और ज़िंदा रहकर मैंने किस के बाप का कर्ज़ चुकाना है जो अब तक मैं चुका नहीं पाया।
उस दिन शुक्रवार होगा, जुम्मे का दिन। अल्लाह के कर्म से आप में से तब तक कोई बाक़ी बचा (जीवित रहा) तो सप्ताहांत के कारण आपको आने-जाने में सुविधा रहेगी। यह दिन 2051 वर्ष का 160वां दिन होगा और और छुट्टीयाँ डालने के लिए आपके पास साल में अभी भी 205 दिन शेष बचेंगे।
याद रहे, 2051 का वर्ष लीप वर्ष नहीं है, इसलिये छुट्टीयाँ डालने के लिये आपका एक दिन और कम हो गया।
यह पूर्व जानकारी इसलिये ताकि आप कोई बहाना न बनाये कि आपको समय पर सूचना नहीं दी। अभी से अपनी "स्मार्ट वाच" को बता दें, पता नहीं इस कागची कलेंडर का प्रचलन उस समय हो या न हो। पता नहीं आपको याद भी रहे या न रहे, आपके पास भी तो "टाइम नहीं है...टाइम नहीं है...मरने का भी टाइम नहीं है ...।"
हमारी "सोशल सेक्युरिटी" तब तक रहे या न रहे, हम भी रहें या न रहें लेकिन यह बात तो निश्चत हो गई है कि उस दिन तक दुनिया रहेगी। उसके बाद क्या होगा आपमें से ही कोई बता सकता है? कहते हैं, आप मरा, जग परलो होई, अर्थात जब मैं मरा तो...मेरी बला से...यानी जब मैं आपके लिये मरा तो आप सब भी, सब-के-सब, मेरे लिये मर जायेंगे..."चैप्टर क्लोज़्ड"। तब, "न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।"
ख़ैर, जो भी होगा, ठीक ही होगा, ऐसा मेरी पवित्र धार्मिक पुस्तक गीता कहती है।
हाँ, मेरी एक ख़्वाहिश। मुझे "चमेली" और उसकी सुगंध से काफ़ी लगाव है। अपने पैसों से ख़रीद कर लाना क्योंकि मेरे मरने के बाद किसी ने मुझ पर एक पैसे के उधार का भी विश्वास नहीं करना।
अपनी मौत का दिन जानकार एक बात की ख़ुशी है कि मैं अब, तब तक चाहे जो मर्ज़ी आए करता फिरूँ... मुझे लाइसेंस मिल गया है... किसी का बाप भी अब मेरा कुछ नहीं उखाड़ सकता मेरा मतलब बिगाड़ सकता, चाहे मैं किसी ईमारत की पाँचवीं मंज़िल से भी नीचे क्यों न कूद पड़ूँ। मुझे, कोई आँच नहीं आ सकती।
लेकिन, यह सब जानते हुए भी मेरा मन डरता है और प्रभु से मेरी यह विनम्र प्रार्थना है, "बस, उतने ही दिन देना, भगवन, जो मैं किसी अपने या पराये पर निर्भर हुए बग़ैर चलते-फिरते, ख़ुशी-वुशी के साथ बिता सकूँ, नहीं तो इस विदेश में एक भी नहीं सगा मेरा जो बिना मतलब के एक पानी का ग्लास भी पीने को दे दे...। ए ख़ुदा, मुझे किसी से ऐसी कोई उम्मीद न रखने के लिए समर्थ बनाये रखना। तू सब की देखभाल करने वाला है, और बड़ी रहमतों वाला है, मुझे भी अपनी छत्रछाया में रखना।
जय बजरंग बली, करना सब की भली, लेकिन
मेरा बुरा चाहने वालों की तोड़ना गर्दन की नली।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
60 साल का नौजवान
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | समीक्षा तैलंगरामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…
(ब)जट : यमला पगला दीवाना
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | अमित शर्माप्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कहानी
ललित निबन्ध
स्मृति लेख
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- अली बाबा और चालीस चोर
- आज मैं शर्मिंदा हूँ?
- काश, मैं भी एक आम आदमी होता
- जायें तो जायें कहाँ?
- टिप्पणी पर टिप्पणी!
- डंडे का करिश्मा
- तुम्हारी याद में रो-रोकर पायजामा धो दिया
- दुहाई है दुहाई
- बादाम खाने से अक्ल नहीं आती
- भक्त की फ़रियाद
- भगवान की सबसे बड़ी गल्ती!
- रब्ब ने मिलाइयाँ जोड़ियाँ...!
- राम नाम सत्य है।
- रेडियो वाली से मेरी इक गुफ़्तगू
- ज़हर किसे चढ़े?
हास्य-व्यंग्य कविता
पुस्तक समीक्षा
सांस्कृतिक कथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं