बगुला
कथा साहित्य | लघुकथा अशोक परुथी 'मतवाला'15 Oct 2022 (अंक: 215, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
“अजी, सुनो! इस रविवार को चंडीगढ़ से मेरी छोटी बहिन आ रही है। यह लो ज़रूरी चीज़ों की लिस्ट। मार्केट जाकर पहले मुझे कुछ चीज़ें ला दो ताकि पिंकी के आने से पहले मैं एक दो चीज़ें तो उसके लिए बना रखूँ। हाँ, कुछ मिठाई भी लेते आना . . . पिंकी को बंगाली मिठाई बहुत पसंद है!”
छह महीने बाद . . .
“हैलो, सावित्री, ऑफ़िस से इसलिए फोन किया है ताकि तुम्हें बता दूँ, कल शाम की गाड़ी से कुछ दिनों के लिए मोहन हमारे पास आ रहा है . . . उसके लिए भी खाना बना लेना! बाज़ार से आते, मैं क्या-क्या लेता आऊँ?”
“उफ्फ, कितने दिनों के लिए वह आ रहा है? मेरी तो अपनी ख़ुद की तबियत सुबह से ख़राब है . . . मुझ से इस हालत में कुछ न बन पाएगा . . . तुम ऐसा करो मार्केट से ‘चाइनीज़’ ऑर्डर करवा लेना!”
“कुछ दिन तो वह यहाँ रहेगा . . . यूनिवर्सिटी में उसे कुछ काम हैं!”
“उसका अपना घर है, लेकिन आने से पहले कुछ एडवांस में तो वह हमें सूचना दे सकता है, न?”
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कहानी
ललित निबन्ध
स्मृति लेख
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- अली बाबा और चालीस चोर
- आज मैं शर्मिंदा हूँ?
- काश, मैं भी एक आम आदमी होता
- जायें तो जायें कहाँ?
- टिप्पणी पर टिप्पणी!
- डंडे का करिश्मा
- तुम्हारी याद में रो-रोकर पायजामा धो दिया
- दुहाई है दुहाई
- बादाम खाने से अक्ल नहीं आती
- भक्त की फ़रियाद
- भगवान की सबसे बड़ी गल्ती!
- रब्ब ने मिलाइयाँ जोड़ियाँ...!
- राम नाम सत्य है।
- रेडियो वाली से मेरी इक गुफ़्तगू
- ज़हर किसे चढ़े?
हास्य-व्यंग्य कविता
पुस्तक समीक्षा
सांस्कृतिक कथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं