फिर मिलेंगे!
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता अशोक परुथी 'मतवाला'18 Jul 2014
ख़ुदा, बचाये,
आजकल के ट्रकों से,
जो टक्कर
मारकर,
सिर फाड़ कर,
कहते निकल जाते हैं-
फिर मिलेंगे!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कहानी
ललित निबन्ध
स्मृति लेख
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- अली बाबा और चालीस चोर
- आज मैं शर्मिंदा हूँ?
- काश, मैं भी एक आम आदमी होता
- जायें तो जायें कहाँ?
- टिप्पणी पर टिप्पणी!
- डंडे का करिश्मा
- तुम्हारी याद में रो-रोकर पायजामा धो दिया
- दुहाई है दुहाई
- बादाम खाने से अक्ल नहीं आती
- भक्त की फ़रियाद
- भगवान की सबसे बड़ी गल्ती!
- रब्ब ने मिलाइयाँ जोड़ियाँ...!
- राम नाम सत्य है।
- रेडियो वाली से मेरी इक गुफ़्तगू
- ज़हर किसे चढ़े?
हास्य-व्यंग्य कविता
पुस्तक समीक्षा
सांस्कृतिक कथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं