अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

काश, मैं भी एक आम आदमी होता

आम आदमी के नेता डॉ. कुमार विश्वास करोड़ों की सामी हैं फिर क्या यह बकवाद नहीं है जब वे कहते हैं - "मैं एक आम आदमी हूँ !" आम आदमी तो वह होता है जो आमों के मौसम में रेहड़ी वाले से दो सेर आम अपने घर के लिए न खरीद सके और तांगे में सफर करे। आम आदमी तो वह होता है जो बस या रेलगाड़ी में सफर करे, कभी-कभार अपनी जेब कटने-कटाने का ज़िकर करे..! आम आदमी तो वह होता है जो गर्मियों में गर्मी और सर्दियों में ठंड से नज़ला-ज़ुकाम और अपनी नाक बहने के कारण हाय-तौबा करे। आम आदमी तो वह होता है जो इस बात को लेकर हल्ला करे कि हर महीने बिजली और पानी का तो बिल आता है लेकिन बिजली और पानी नहीं आता! आम आदमी तो वह होता है जो एक ‘सालम’ (पूरा) तांगा लेकर रेलवे स्टेशन तक न जा सके! लेकिन, अपने कुमार साहिब तो जब चाहे मुँह उठायेँ और हवाई जहाज़ में अमेरिका, कनाडा या किसी अन्य देश का सैर-सपाटा कर आयें। जब चाहें वे पाँच सितारा होटलों में ठहरें और मौज-मस्ती कर आयें!

हाल ही में अपने अमेरिका और कनेडा के दौरे से कुमार साहिब ने हज़ारों डालर बटौर कर अपने बैंक-खातों में डाले हैं। भारत में भी वे लाखों के बंगले में रहते हैं। आगे पीछे उनके नौकर-चाकर रहते हैं - फिर वे आम आदमी कैसे हुये?

हाँ, अगर आप यह दलील दें कि आजकल हर आम आदमी के पास दो-तीन करोड़ तो होता ही है या फिर यूँ कहें की दो-तीन करोड़ आजकल होता ही क्या है तो फिर मान लेते हैं कि कुमार साहिब एक आम आदमी हैं? क्या आपको यह दलील जायज़ लगती है? मेरे हल्क से तो यह बात नहीं उतर रही कि वह आदमी जिसके पास करोड़ों की जायदाद हो, एक आम आदमी है या हो सकता है!

कुमार विश्वास के रहने के इंतज़ाम और ठाठ-बाट को देखें तो उनकी बात पर बिलकुल भी विश्वास नहीं होता, उनकी बात बिलकुल बकवाद लगती है कि वह एक आम आदमी हैं। यह तो अब आयकर विभाग वाले ही इसकी जांच-पड़ताल कर के जनता को बता सकते हैं कि वे एक आम आदमी हैं या नहीं!

मेरी जानकारी के मुताबिक अमेठी से, लोक सभा चुनावो से पहले श्री विश्वास ने अपना नामांकन पत्र भरने के समय जो अपने धन की घोषणा की थी उसके मुताबिक उस समय वे लगभग चार करोड़ के मालिक थे। उस वक़्त की कीमत के अनुसार उनके दो निवासों - एक ऋषिकेश में और एक वसुंदरा, गाजियाबाद में –की कीमत मात्र 1.29 करोड़ रुपये थी। चुनाव आयोग के पास भरे गये कागज़ों के मुताबिक उनके सिर पर 6.73 लाख रुपये का ऋण और उनके हाथ में 1.75 लाख रुपए और उनकी धर्म पत्नी श्रीमति मंजु शर्मा के पास 1.1 लाख रूपये की नकदी दिखाई गई थी। इसके इलावा कुछेक लाख जो इधर-उधर हैं मैंने उसका ज़िकर नहीं किया। कहीं आप अपना कुतर्क देने लगें कि सब कुछ मिलाकर चार करोड़ नहीं बनते!

इनके मुक़ाबले भाजपा के नेता श्री मोदी जी, जो अब हमारे प्रधान मंत्री हैं, के पास गुजरात के वदोदरा चुनाव हल्के से लोकसभा के लिए चुनाव लड़ने से पहले 1.51 करोड़ रुपये की संपति थी। चुनाव आयोग के पास भरे गये कागज़ों के मुताबिक मोदी जी के पास सोने की चार मुन्दरियाँ (छापें) थी, जिनकी कीमत 1.35 लाख रुपये, गांधीनगर, गुजरात में उनके निवास की कीमत लगभग एक करोड़ लगाई गई थी। उस वक़्त उनके पास 29700 रुपये की नकदी थी और बाकी की धन राशि बैंक में जमा–खातों में थी। मज़ेदार बात यह है कि मोदी जी के पास उस वक़्त अपना कोई वाहन नहीं था। मोदी जी के पास क्या है और क्या नहीं इससे हमें कोई एतराज़ नहीं है क्योंकि वह एक आम आदमी नहीं, उनका संबंध तो भाजपा से है! हमारा एतराज़ तो उन लोगों के प्रति है जो करोड़पति हैं और आम आदमी होने का दावा करते हैं!

अगर मैं यह कहूँ कि मैं एक आम आदमी हूँ तो बात जायज़ है क्योंकि पिछले 25 साल से “मतवाला” (मैं) अमेरिका में अपनी ऐसी-तैसी करा रहा है, लेकिन आज अगर वह खुद को भी बाज़ार में बेच दे तो भी उसके पास भारत में एक प्लाट लेने के लिए पूरी राशि नहीं निकलती, बंगला बनाने की तो बात दूर रही!

अगर भारत में यही एक आम आदमी की परिभाषा और पहचान है तो ईश्वर मुझे भी जल्द से जल्द भारत वापिस आने का सौभाग्य दें और मुझे एक -दो बंगले, जेब में लाखों की नकदी, 50-100 एकड़ ज़मीन का स्वामी बनाकर अपने आशीर्वाद से नवाजें।

भाईयो, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं किसी से कभी कोई गिला-शिकवा नहीं करूँगा, गिली-सूखी खाकर अपना बाकी का जीवन इन "आम आदमियों" की तरह, अपने बचपन और जवानी के शहर चंडीगढ़ में गुज़ार दूँगा। कृपया मेरे लिए भी आप एक छोटे से बंगले, दो-चार करोड़ रोकड़े और एक विदेशी गाड़ी (ड्राईवर साथ में हो तो सोने पर सुहागा) की कामना/प्रार्थना करें! आपके मुँह में घी-शक्कर! इधर आपकी मनोकामना पूरी हुई नहीं कि उधर अगले दिन मैं स्वदेश लौटा नहीं!

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी

ललित निबन्ध

स्मृति लेख

लघुकथा

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

हास्य-व्यंग्य कविता

पुस्तक समीक्षा

सांस्कृतिक कथा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

लेखक की पुस्तकें

  1. अंतर