रेडियो वाली से मेरी इक गुफ़्तगू
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी अशोक परुथी 'मतवाला'26 Jun 2014
रेडियो बज रहा है। गाना ख़त्म होते ही रेडियो ‘प्रेज़ेंटर’ जिन्हें अँग्रेज़ी भाषा में ‘डी.जे.’ शॉर्ट फ़ॉर ‘डिस्क जॉकी’ भी कहा जाता है, हवा की लहरों पर आई और उसने अपनी मधुर आवाज़ में कहना शुरू किया, “हमें आपकी फ़रमाइश का हमेशा ख़्याल रहता है, अगर आप कोई गाना सुनना चाहते हैं तो हमें अभी “कॉल” करें और बतायें कि आप क्या सुनना पसंद करेंगे। हमारे स्टूडियोज़ का नंबर रहता है 281-983-9292|”
“हैलो, कॉलर . . . संगीत रेडियो . . . यू आर आन एयर,” रेडियो ‘प्रेज़ेंटर’ सरीना ने एक ‘कॉलर’ को ‘ऑन एयर’ लेते हुए कहा।
“जी मैं . . . ‘ऑफ़ एयर’ बात करना चाहता हूँ!” मैंने जवाब में कहा।
“तो आपको डालते हैं, हम होल्ड पर . . . कुछ क्षणों के लिये . . . और बढ़ते हैं दूसरे कॉलर की तरफ़!” यह कहते हुए सरीना ने अपना प्रोग्राम ज़ारी रखा, “जी हाँ, हमारे एक ‘लिस्नर’ ने बिल्कुल ठीक ही कहा है के ‘ई’ मेल’ और ‘फ़ी’ मेल के बिना ज़िंदगी बिल्कुल ही अधूरी है . . . और कुछ ही देर में, हम देने जा रहे हैं आपको, आज का नुस्ख़ा। कहते हैं, “वन एप्पल ए डे, कीपस द डॉक्टर अवे!”
एक लंबी साँस लेकर सरीना ने फिर कहना शुरू किया, “जी हाँ, उम्मीद है आप को आज का प्रोग्राम पसंद आ रहा होगा। आप अपने काग़ज़ और ‘पेन’ निकाल कर अब बिल्कुल तैयार हो गए होंगे . . . आज का नुस्ख़ा लिखने को . . . मैं आज पूरी कोशिश करूँगी कि धीरे-धीरे बोलूँ ताकि आप कुछ ‘मिस’ न करें, लेकिन अगर फिर भी दी गई जानकारी के अतिरिक्त आप कुछ और जानना चाहेंगे तो आप हमें ‘स्टूडियो’ के नंबर पर ‘कॉल’ कर सकते हैं। इससे पहले कि हम आपको नुस्ख़ा दें, आइये, लेते हैं एक छोटा सा ‘ब्रेक’ और फिर लौट कर देंगे . . . हम आपको मौसम की जानकारी . . . और उसके तुरंत बाद हम आपको देंगे—आज का नुस्ख़ा! इस ‘आवर’ में हम आपसे एक ‘क्विज़’ भी करेंगे और सही जवाब देने वाले को दिया जाएगा, 17 अप्रैल को ह्यूस्टन में होने वाले आशा भोंसले ‘कॉन्सर्ट’ का एक ‘फ्री’ टिकेट!”
थोड़ी देर ‘ऑन एयर’ अपनी गुफ़्तगू के बाद सरीना ने कुछ स्थानीय व्यापारियों के विज्ञापन चला दिये और उसके बाद लोगों के मनोरंजन के लिये एक नया-सा लोकप्रिय गाना भी लगा दिया।
इधर मैं ‘डी.जे.’ सरीना के लौटने की इंतज़ार में बेसब्र था! मन ही मन कह रहा हूँ–‘नीम हकीम, ख़तरा-ए-जान!’ पंजाबी में इसका अनुवाद है, “ए हकीम, तू नींम के पेड़ के नीचे मत सो, तेरी जान को ख़तरा!”
“हैलो, ‘सॉरी’ आपको ‘होल्ड’ पर डालना पड़ा, कहिये क्या बात है, कैसे हैं आप, अशोक जी?” सरीना ने क्षमा माँगते हुए, सहजपूर्वक मुझसे पूछा!
“जी शुक्रिया, बड़ी मेहरबानी आपकी!” जवाब में मैंने फिर कहना शुरू किया, “मैं आपके नुस्ख़ों का तो क़ायल नहीं, मगर उनसे घायल ज़रूर हुआ हूँ . . . आपको याद है, उस रोज़ आपने ‘सिगरेट की बुरी आदत से छुटकारा कैसे पायें?’ के लिये कुछ घरेलू नुस्ख़े दिए थे . . .” एक लंबा साँस लेते हुए मैंने फिर कहना शुरू किया, “और आप ने यह भी कहा था कि इस आदत से छुटकारा पाने के लिए हर रोज़ दो ग्लास संतरे के जूस पीने से काफ़ी सहायता मिलती है . . .”
“हाँ, हाँ, मुझे बख़ूबी याद है और रेडियो पर मैंने जो जानकारी दी वह एक ‘रिसर्च आर्टिक्ल’ पर आधारित थी . . . वैसे भी संतरे का रस तो ‘नैचुरल’ और विटामिन ‘सी’ से भरपूर होता है, सेहत के लिए लाभकारी होता है,” सरीना ने जवाबी तर्क दिया!
इसके पहले कि सरीना कुछ और तर्क देती उसकी बात बीच में काटते हुए मैं पुनः बोला, “मैं आपकी बात से बिल्कुल सहमत नहीं हूँ। संतरे का रस अच्छा होता है . . . लेकिन सबके लिये नहीं . . . और संतरे का रस ‘नैचुरल’ था या फिर ‘कॉन्संट्रेट’ से बना था इसका मुझे कुछ पता नहीं, लेकिन संतरे के रस को पीने का आपका सुझाव मुझे नुक़्सान कर गया है . . .”
यह सुनकर सरीना ख़ामोश हो गई और फिर बोली, “कुछ ‘मिस’ हो गया क्या? आपने नुस्ख़ा ठीक से नहीं लिखा होगा, आप दुबारा कुछ सुनना चाहेंगे?”
“नहीं, नहीं, अल्लाह न करें . . . एक बार ही काफ़ी है, आपने तो मेरी जान ही ले ली थी। यह तो अल्लाह का ‘शुकर’ है कि मैं बच गया हूँ। अब आप ही बताएँ, मैं क्या करूँ . . . मेरा वकील आपके कूचे का पता पूछ रहा है . . . आप कहाँ रहती हैं?”
“ज . . . ज . . . जी, ज . . . ज . . . जी, आई एम वेरी सॉरी . . . क . . . क . . . क्या हुआ? आप ठीक तो हैं?” सरीना हकलाते हुए बोली।
“पहले आप यह बतायें कि क्या आप एक ‘होमीयोपैथिक’ डॉक्टर हैं, ‘एलोपैथिक’ डॉक्टर हैं या फिर एक ‘आयुर्वेदिक’ डॉक्टर हैं?”
“जी . . . जी . . . मैं डॉक्टर तो नहीं, पर दवाइयों के बारे में बहुत कुछ जानती हूँ, लेकिन अब आप यह मत पूछियेगा कि मेरी डिग्रियाँ क्या हैं?”
चुस्की लेते हुए मैंने पुनः कहा, “इसकी आप अभी बिल्कुल भी चिंता न करें, यह सब सवाल आपसे मेरा वकील ही करेगा . . . कोर्ट में!”
“कोर्ट में?” सरीना थोड़ा बौखलाई!
“जी, हाँ!” मैंने दोहराया और फिर कहा, “आप बस अपने घर का पता दें, ताकि वह (मेरा वकील) आपको ‘सम्मन’ (कोर्ट में पेशी के आदेश) भिजवा सके।”
“आख़िर हुआ क्या है, मुझे खेद है ‘एंड आई एम वेरी सॉरी’!” माफ़ी माँगते हुए सरीना ने कहा।
“जी, हाँ, आप अगर मजबूर कर ही रही हैं तो बता देता हूँ कि मैं मधुमेह की बीमारी का एक रोगी हूँ और सिगरेट भी पीता हूँ। आपने अपने ‘घरेलू नुस्ख़े’ प्रोग्राम के दौरान सिगरेट से छुटकारा पाने के लिए यह कहा था कि संतरे का रस सिगरेट छोड़ने में लाभकारी सिद्ध हुआ है और दिन में दो-तीन ग्लास रस के पीने की हिदायत दी थी . . . मुझे बिल्कुल याद है, जुम्मे का दिन था, दिन के अढ़ाई बजे होंगे जब मैंने आपकी हिदायतानुसार ‘जूस’ का पहला ग्लास पिया था, मुझे यह भी ख़ूब अच्छी तरह याद है कि आपके रेडियो पर उस वक़्त यह गाना बज रहा था . . . ‘चुप कर . . पापा जग जाएगा . . चुप कर . . . पापा जग . . .’ इसके बाद क्या हुआ और मुझे क्या नहीं हुआ, यह तो मौला ही जानता है। मेरा ख़्याल यह है कि मैं उस वक़्त सोफ़े पर ही था और ज़मीन पर अभी लुढ़का नहीं था। मेरी आँखें बंद हो चुकी थीं, और शायद मैं ‘कोमा’ में जा रहा था। कुछ क्षणों के बाद रेडियो मेरे लिए चुप था और मैं रेडियो के लिये!
“मुझे ‘ऐम्बुलेंस’ वाले ने यह सब कुछ अस्पताल में दो दिन के बाद आकर बताया था। पूरे दो दिन मैं लोक-परलोक की (बेहोशी के हालत में) सैर करता रहा क्योंकि अस्पताल के डॉक्टर और नर्सें यही एक दूसरे से कहते रहे, ‘ही इज़ नॉट हियर, ही इज़ इन कौमा!’
“शुक्र ऊपर वाले का और उस ‘ऐम्बुलेंस’ वाले का जो बिना कोई देर किए गलियों और सड़कों पर अपना भोंपू बजाता हुआ आया होगा, और मुझे मेरे कूचे से मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उठाकर अपनी गाड़ी में लाद कर अस्पताल ले गया होगा।”
“अशोक जी, मुझे बड़ा दुख है . . .” इससे पहले की सरीना अपनी हमदर्दी जता पातीं मैंने उसकी बात को एक बार फिर बीच में काटते हुए कहा, “आपको क्या, दुख तो मुझे हुआ है और अभी भी हो रहा है। दरअसल मुझे पूरा तब पता चलेगा जब मैं अस्पताल के सारे बिल अकेला भुगता पाऊँगा, लेकिन मुझे ऐसा सम्भव नहीं लग रहा . . . पूरे पाँच हज़ार आठ सौ पचहत्तर डॉलर और ‘सिक्स्टी फ़ाइव सेंट’ का बिल है। इसके इलावा मुझे जो तकलीफ़ और पीड़ा झेलनी पड़ी, वह अलग। यक़ीन करें, मैं छटपटाने और तड़पने के अलावा कुछ और नहीं कर सका। बेदर्द और नौसिखिया नर्सें मेरी बाज़ुओं में सूइयाँ चुभोने की ‘प्रैक्टिस’ करती रहीं . . . और मैं जब चीखा-चिल्लाया तो मुझे ही दोष देने लगीं, ‘तुम अपनी बाज़ू हिला देते हो, तुम्हारी नाड़ियाँ ‘रोल’ हो जाती हैं इसिलिये थोड़ी मुश्किल हो रही है ‘आइवी’ लगाने में!‘ ‘आइवी स्टार्ट’ नर्सों से नहीं हो रही थी लेकिन इसमें भी दोष मेरा ही था!”
मैंने फिर कहना शुरू किया, “लेकिन आप बिल्कुल भी चिंता ना करें, चूँकि अस्पताल वालों से मैंने बिल भुगतान करने के लिए कुछ और दिनों की मोहलत ले ली है।”
“ब्लेस यूअर हार्ट, आई एम सो सारी,” सरीना ने एक बार फिर घबराते हुए कहा।
तीर निशाने पर लगता देख कर मैंने सरीना को यह सुझाव दिया, “कृपया अगली बार अपने नुस्ख़े देने से पहले अपने सुनने वालों को यह ज़रूर चेतावनी दें कि आप एक डॉक्टर नहीं हैं और इन नुस्ख़ों को प्रयोग में लाने से पहले वे अपने डॉक्टर से विचार-प्रमर्श ज़रूर करें ताकि मेरे जैसे कई अन्य ‘शुगर’ के मरीज़, दो तो क्या आधा ग्लास भी ‘जूस’ का ना पीयें जब तक कि वह अपने डॉक्टर से परामर्श न कर लें!”
“मैं, नुस्ख़े देने से पहले हमेशा यह चेतावनी देती हूँ लेकिन न जाने कैसे मुझसे यह ग़लती हो गयी, उस रोज़? मैं इसका भविष्य मैं पूरा ख़्याल रखूँगी, अशोक जी!” सरीना ने एक बार फिर मुझे भरोसा दिलाया।
“अगली बार आप यह बात बिल्कुल नहीं भूलेंगी, आपको मैं पूरा विश्वास दिलाता हूँ। ‘मैं हूँ न’ आपको याद कराने के लिए?”
इधर सरीना का ‘आन एयर’ जाने का समय हो आया था चूँकि गाना ख़त्म होने को आया था। इसीके साथ मैंने ‘खुदा हाफिज़’ कहते हुए सरीना से इजाज़त ली।
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