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मैं हिंदी हूँ

मैं हिंदी हूँ, 
हिंदुस्तान की हिंदी हूँ। 

मैं तुम्हारी राष्ट्रभाषा, 
जन जन की अभिलाषा दर्शाती हूँ, 
भावों को व्यक्त कर, 
जन जन की बोली बन जाती हूँ, 
माला के मोती समान, 
सरगम के सुर पिरोती हूँ। 
मैं हिंदी हूँ, 
हिंदुस्तान की हिंदी हूँ। 
 
मैं रामायण की चौपाई, 
और विचारों की इकाई हूँ, 
संस्कृत है मेरी जननी, 
और उर्दू में भी समाई हूँ, 
मैं संस्कारों की मूरत, 
भारतीय मूल की परछाईं हूँ। 
मैं हिंदी हूँ, 
हिंदुस्तान की हिंदी हूँ। 
 
कभी कबीर का कथन, 
तो कभी हूँ मीरा का भजन, 
कभी सूरदास की तान, 
तो कभी हूँ कंठ माला सी, दोहे में सृजन, 
कभी कलाकारों का हूँ मंचन, 
तो कभी हूँ, सहित्यकारों का मनभावन लेखन। 
मैं हिंदी हूँ, 
हिंदुस्तान की हिंदी हूँ। 
 
मैं स्वतंत्रता का संग्राम हूँ, 
तो कभी आज़ादी का आह्वान हूँ, 
कभी क़लम की शक्ति, 
तो कभी अख़बारों में छपा प्रकाशन हूँ, 
कभी वीरांगनाओं की गाथा हूँ, 
तो कभी शहीदों का बलिदान हूँ। 
मैं हिंदी हूँ, 
हर नागरिक की पहचान हूँ, 
मैं हिंदी हूँ, 
सहज, सुंदर और गरिमावान हूँ, 
मैं हिंदी हूँ, 
हिन्द देश की आन बान और शान हूँ। 

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